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आचारदिनकर (खण्ड-४)
132 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका, देव-देवी, इहलोक-परलोक, केवलि-प्ररूपित धर्म, देव, मनुष्य, असुरों सहित समग्रलोक, समस्त विकलत्रय (प्राण), भूत, जीव, सत्व, तथैव काल, श्रुत, श्रुतदेवता, वाचनाचार्य - इन सबकी आशातना से तथा आगमों का अभ्यास करते एवं कराते हुए सूत्र के पाठों को या सूत्र के अक्षरों को उलट-पुलट आगे पीछे किया हो, शून्य मन से कई बार पढ़ता ही रहा हो, अथवा अन्य सूत्रों के एकार्थक, किन्तु मूलतः भिन्न-भिन्न पाठ अन्य सूत्रों से मिला दिए हों, हीनाक्षर, अर्थात् अक्षर छोड़ दिए हों, अक्षर बढ़ा दिए हों (अत्यक्षर), अक्षर समूहात्मक पद-विभक्ति आदि छोड़ दी हो (पदहीन), शास्त्र एवं शास्त्राध्यापक का समुचित विनय न किया हो, उदात्तादि स्वरों से रहित पढ़ा हो, उपधानादि तपोविशेष के बिना, अथवा उपयोग के बिना पढ़ा हो, अधिक ग्रहण करने की योग्यता न रखने वाले शिष्य को भी अधिक पाठ दिया हो, वाचनाचार्य द्वारा दिए हुए आगम-पाठ को दुष्ट भाव से ग्रहण किया हो, कालिक-उत्कालिक-सूत्रों को उनके निषिद्धकाल में पढ़ा हो, विहित काल में सूत्रों को न पढ़ा हो, अस्वाध्याय की स्थिति में स्वाध्याय किया हो, स्वाध्याय की स्थिति में स्वाध्याय न किया हो।
उक्त प्रकार के श्रुतज्ञान की चौदह आशातनाओं में से जो कोई भी अतिचार लगा हो, उसका दुष्कृत मेरे लिए मिथ्या हो। विशिष्टार्थ -
भयठाणेहिं - भय, उत्पाद, आदि के कारणरूप निम्न सात भय स्थान हैं - १. इहलोकभय २. परलोकभय ३. आदानभय ४. अकस्मात्भय ५. आजीविकाभय ६. मरणभय और ७. अपयशभय।
अट्ठमयट्ठाणेहिं - निम्न आठ मद स्थान हैं - १. जातिमद २. लाभमद ३. कुलमद ४. ऐश्वर्यमद ५. बलमद ६. रूपमद ७. तपमद एवं ८. श्रुतमद।
नवहिं बंभेचरगुत्तीहिं -ब्रह्मचर्य गुप्तियों के निम्न नौ स्थान हैं - १. स्त्री, नपुंसक पशु से युक्त गृह में न ठहरें। २. स्त्री, नपुंसक आदि के साथ एक आसन पर न बैठे।
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