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________________ आचारदिनकर ( खण्ड - ४) 128 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि पालन न करने से जो भी अतिचार लगा हो, उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । विशिष्टार्थ समिएहिं - संयम के क्षेत्र में सम्यक् प्रवृत्ति को, अथवा मन, वचन एवं काया द्वारा चारित्र के पालन को समिति कहते हैं । इरियासमिइए चलते समय जीव-जन्तुओं की रक्षा करने के लिए देखते हुए चलने को ईर्या समिति कहते हैं । भासासमिइए - संज्ञादि के परिहाररूप एवं मौन ग्रहण करने को भाषासमिति कहते हैं। आयान भंडमत्त निक्खेवणा समिइए उपकरणों को सावधानीपूर्वक ग्रहण करना एवं जीवरहित प्रमार्जित भूमि पर निक्षेपण करने को आदान - भंडपात्र - निक्षेपण - समिति कहते हैं - उच्चार-पसवण- खेल - जल्ल-सिंघाण परिट्ठावणिया समिईए जीव-जन्तु से रहित प्रतिलेखित भूमि पर मल-मूत्र, कफ, शरीर के मल, नाक के मल आदि का उत्सर्ग करने को पारिष्ठापनिकासमिति कहते हैं 1 - “पडिक्कमामि छहिं जीवनिकाएहिं - पुढविकाएणं आउकाएणं तेउकाएणं वाउकाएणं वणस्सइकाएणं तसकाएणं ।" भावार्थ पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रसद्वीन्द्रिय आदि इन छहों प्रकार के जीव- निकायों से, अर्थात् इन जीवों की हिंसा करने से जो भी अतिचार लगा हो, उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । विशिष्टार्थ - Jain Education International - जीवनिकाएहिं - समान गुण वाले प्राणियों के समूह को निकाय कहते हैं। ऐसी उन षट्जीवनिकायों की हिंसा का प्रतिक्रमण करता हूँ । पुढविकाएणं कठोरता के लक्षण वाली मृत्तिका, लोष्ट आदि पृथ्वीकाय कहलाती हैं। आउकाएणं एवं शुद्ध जल को अप्काय कहते हैं । . - - जल के अनेक प्रकार हैं। बर्फ, कोहरा, ओला For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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