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________________ आचारदिनकर (खण्डड-४) 127 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि " पडिक्कमामि पंचहिं महव्वएहिं- सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं । “ भावार्थ प्राणातिपात विरमण, मृषावाद - विरमण, अदत्तादान - विरमण, मैथुन - विरमण एवं परिग्रह - विरमण इन पाँचों महाव्रतों से, अर्थात् पाँचों महाव्रतों का सम्यक् रूप से पालन न करने से जो भी अतिचार लगा हो, उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । विशिष्टार्थ 1 महव्वएहिं - गृहस्थों के अणुव्रतों की अपेक्षा से महान् होने के कारण साधुओं के व्रत महाव्रत कहे जाते हैं । पाणाइवायाओ वेरमणं षट्जीवनिकाय - हिंसा के विरमणरूप व्रत को प्राणातिपात कहते हैं । मुसावायाओ वेरमणं - अप्रिय, अहितकर असत्य वचनों के विरमणरूप व्रत को मृषावाद - विरमणव्रत कहते हैं । अदिण्णादाणाओ वेरमणं - दन्त-शोधन के लिए तिनके से लेकर दूसरों के द्वारा न दी गई वस्तु का ग्रहण न करना अदत्तादान-विरमणव्रत है । भावार्थ मेहुणाओ वेरमणं - शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, देव, मनुष्य, तिर्यंच आदि के साथ सुरत आदि क्रिया के विरमणरूप व्रत को मैथुन - विरमणव्रत कहते है । परिग्गहाओ वेरमणं सभी पदार्थों में ममत्व नहीं रखने सम्बन्धी व्रत को परिग्रह - विरमणव्रत कहते हैं I "पडिक्कमामि पंचहिं समिईहिं- इरियासमिईए भासासमिईए एसणासमिईए आयाणभंडत्तमत्तनिक्खेवणासमिईए उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणपरिट्ठावणियासमिईए ।" - - - Jain Education International ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणा - समिति, उच्चार - प्रवर्ण - श्लेष्म- जल्ल-सिंघाण - परिष्ठापनिकासमिति - उक्त पाँचों समितियों से, अर्थात् समितियों का सम्यक् For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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