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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) विशिष्टार्थ - गोयरचरिआए - गोचरचर्या तीन शब्द से मिलकर बना है, गो+चर+चर्या, गाय के समान उत्तम, मध्य एवं जघन्य कुलों में अपेक्षारहित होकर, हीनभाव लाए बिना, लुब्ध हुए बिना तथा आर्तध्यान से रहित होकर, शुद्धभिक्षा के लिए विचरण करने को गोचर कहते हैं तथा उसकी क्रियाविधि को गोचरचर्या कहते हैं । शुद्ध अन्न-पान ग्रहण करने के हेतु भ्रमण भिक्खायरिआए करना, न कि आमोद-भ्रमण करना या कौतुकवशात् घूमना । - उग्घाडकवाड उग्घाडणाए अर्गला, सांकल, ताले आदि से रहित किवाड़ को खोलना । यहाँ प्रतिलेखन किए बिना किवाड़ खोलने से अतिचार लगता है । ग्रहण करना । 117 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि साणावच्छादारासंघट्टणाए - श्वान ( कुत्ते), बछड़े एवं बालकों का संस्पर्श करने से । इनका संस्पर्श करने पर तथा इनको पीड़ा पहुँचाने पर तथा इनका उल्लंघन करने पर दोष लगता है । मंडी पाहुडीआए - ( गृहस्थ के ) पात्र में रखे गए अग्रपिण्ड में से आहार ग्रहण करना । बलिपाहुडी आए - देवता को नैवेद्य चढ़ाने के उद्देश्य से तथा होम के निमित्त से रखे गए अन्न में से आहार ग्रहण करना । ठवणापाहुडियाए - जो कोई भी वस्तु साधुओं के लिए अलग से रखी गई है, उस भोजन-सामग्री को ग्रहण करना । संकिए - जिसमें आधाकर्म आदि दोषों की शंका हो ऐसे आहार को ग्रहण करना । सहसागारे सत्-असत् का विचार किए बिना उतावलेपन में → Jain Education International आहार ग्रहण करना । आणेसणाए- पाणेसणाए - निर्दोष पिण्ड की गवेषणा को अन्नेषणा कहते हैं तथा प्रासुक जल ग्रहण करने को पाणैषणा कहते हैं । आहार- पानी को अतिचारपूर्वक ग्रहण करना । पाणभोयणाए - सूक्ष्मतर द्वीन्द्रिय आदि जीवों से युक्त भोजन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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