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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 116 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि अब शयन सम्बन्धी दोषों का प्रतिक्रमण करके भिक्षा सम्बन्धी दोषों का प्रतिक्रमण करें, वह इस प्रकार है - “पडिक्कमामि गोयरचरियाए, भिक्खायरियाए उग्घाडकवाडउग्घाडणाए, साणावच्छादारासंघट्टणाए, मंडीपाहुडियाए, बलिपाहुडियाए, ठवणापाहुडियाए, संकिए, सहसागारे, अणेसणाए, पाणेसणाए, पाणभोयणाए, बीयभोयणाए, हरियभोयणाए, पच्छाकम्मियाए, पुरेकम्मियाए, अदिट्ठहडाए, दगसंसट्ठहडाए, रयसंसट्ठहडाए, पारिसाडणियाए, पारिट्ठावणियाए, ओहासणभिक्खाए, जं उग्गमेणं, उप्पायणेसणाए अपरिसुद्ध, परिग्गहियं, परिभुत्तं वा जं न परिट्ठवियं, तस्स मिच्छामि दुक्कडं। भावार्थ - गोचरचर्यारूप भिक्षाचर्या में, यदि ज्ञात अथवा अज्ञात - किसी भी रूप में जो भी अतिचार लगा हो, उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। अधखुले किवाड़ों को खोलना, कुत्ते, बछड़े और बच्चों का स्पर्श करना, अग्रपिण्ड, बलिकर्म एवं स्थापना-दोष से दूषित भिक्षा लेना, इसी प्रकार आधाकर्मादि दोषों की शंका वाला भोजन लेना, शीघ्रता में आहार लेना, बिना एषणा के लेना, जिसमें कोई जीव पड़ा हो- ऐसा भोजन लेना, बीजों वाला भोजन लेना, सचित्त वनस्पति वाला भोजन लेना, साधु को आहार देने के बाद तदर्थ सचित्त जल से हाथ या पात्रों को धोने के कारण लगने वाला पश्चात्कर्म दोष, साधु को आहार देने से पूर्व सचित्त जल से हाथ या पात्र के धोने से लगने वाला पुरःकर्म दोष, बिना देखे भोजन लेना, सचित्त जल से स्पृष्ट वस्तु लेना, सचित्त रज से स्पृष्ट वस्तु लेना, पारिशाटनिका, अर्थात् देते समय मार्ग में गिरता-बिखरता हुआ दिया जाने वाला भोजन लेना पारिष्ठापनिका दोष से आहार लेना, उत्तम वस्तु माँगकर भिक्षा लेना, उद्गम-उत्पादन एवं एषणा के दोषों से युक्त आहार लेना। उपर्युक्त दोषों वाला अशुद्ध - साधु-मर्यादा की दृष्टि से अयुक्त आहार-पानी ग्रहण किया हो, प्राणों को टिकाने के लिए ग्रहण किया हुआ आहारभोग लिया हो, दूषित जानकर भी परठा न हो, तो तज्जन्य मेरा समस्त पाप मिथ्या हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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