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________________ आचारदिनकर ( खण्ड - ४ ) 87 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि (७) कच्छ वरंगिय ( कच्छपरंगित ) - कछुए की तरह आगे-पीछे खिसकते हुए वन्दन करना । (८) मत्सुवत्त ( मत्स्योद्वृत्त) एक आचार्य को वन्दन करके वहीं बैठे-बैठे ही मत्स्य की तरह शरीर पलटकर दूसरे आचार्य को वन्दन करना । (६) मणसापउट्ठ (मनसाप्रद्विष्टं ) - गुरु के प्रति द्वेष रखकर वेदिकाबद्ध - वन्दन के दोष वन्दन करना । (१०) वेइयाबद्ध ( वेदिकाबद्धं) पाँच प्रकार के होते हैं - १. दोनों घुटनों पर दोनों हाथ टेककर वन्दन करना । २. दोनों हाथ नीचे रखकर वन्दन करना । ३. गोद में हाथ रखकर वन्दन करना । ४. दायां या बायां घुटना दोनों हाथ के मध्य रखकर वन्दन करना । ५. दोनों पसलियों पर हाथ रखकर वन्दन करना । ( ११ ) भयसा ( भयेन ) - यदि मैं वन्दन नहीं करूंगा, तो गुरु मुझे गच्छ से बाहर कर देंगे इस भय से वन्दन करना । ( १२ ) भयन्त ( भजमान) - गुरु की सेवा करते हुए उन पर ताना मारना, अथवा चूँकि गुरु लोकपूज्य हैं- यह जानकर उपेक्षाभाव से उन्हें आदर देना । (१३) मित्ती (मैत्री) - आचार्य के साथ मैत्री (प्रीति) चाहते हुए वन्दन करना । F"l_ ( १४ ) गारव ( गौरवं ) - " वन्दनादि सामाचारी में मैं कुशल इसे बताने के लिए वन्दन करना । (१५) कारण विद्या (मंत्र - विद्या) वस्त्र आदि वस्तुओं की अभिलाषा से गुरु को वन्दन करना । (१६) तेणिय ( तैनिक ) - लघुता के भय से चोरी-छुपे वन्दन करना । दूसरा कोई श्रावक या साधु न देखे, इस तरह चोरी-छुपे वन्दन करना। दूसरे यदि देखेंगे, तो कहेंगे कि अहो ! ये विद्वान होते Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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