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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 82 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि ____ वन्दन के पाँच अनधिकारी इस प्रकार हैं - १. अवसन्न २. पार्श्वस्थ ३. कुशील ४. संसक्त एवं ५. यथाच्छंद। जो संयम-पालन में सुस्ती एवं खेद को प्राप्त करता है, अर्थात् शिथिलता का अनुसरण करता है, उसे अवसन्न कहते हैं। पूर्णतः एवं अंशतः अवसन्न की व्याख्या आवश्यकसूत्र से जानें। जो बाह्यतः ज्ञान, दर्शन, चारित्र की साधना करते हुए भी उससे विमुख रहे, अर्थात् उनका कुछ भी उपयोग न करे, उसे पार्श्वस्थ कहते हैं। सर्वतः एवं देशतः पार्श्वस्थ की व्याख्या भी आवश्यकसूत्र से जानें। जो कुत्सित आचार का पालन करे तथा सावध क्रियाओं में निरत रहे, उसे कुशील कहते हैं। कुसंगति में रहने के कारण जिसका चारित्र दग्धवत् है, उसे संसक्त कहते हैं। गण और संघ से त्यक्त तथा अपनी इच्छा के अनुसार आचरण करने वाले को यथाछंद कहते हैं। इन सब की विस्तृत व्याख्या आवश्यकसूत्र, उपदेशमाला आदि ग्रन्थों से जानें। यह आचारग्रन्थ है, इसलिए यहां इनकी संस्कृत-छाया एवं अर्थ ही बताया गया है। जिनमत में इन पाँचों को वन्दन के अयोग्य माना गया है। जैसा कि कहा गया है - पार्श्वस्थ आदि को वंदन करने से न तो कीर्ति की प्राप्ति होती है और न ही कर्मों की निर्जरा होती है, अपितु मात्र कायक्लेश एवं कर्म का बन्ध ही होता है। पाँच उदाहरण निम्न हैं - १. द्रव्य और भावसहित वंदन २. रजोहरणवंदन ३. वृत्तवंदन ४. नमनपूर्वक वंदन ५. विनयपूर्वक वंदन - इन पाँचों प्रकार के वंदन के सम्बन्धों में क्रमशः शीतलाचार्य, क्षुल्लक, कृष्ण, सेवक एवं पालक के दृष्टान्त बताए गए हैं। द्रव्य-भाववन्दन में शीतलाचार्य का दृष्टान्त, रजोहरणवंदन में क्षुल्लकाचार्य का दृष्टांत, आवर्त्तवंदन में कृष्ण का दृष्टांत, नमन में सेवक का दृष्टांत एवं विनय में पालक का दृष्टांत दिया गया है। ये सब कथानक विस्तार से आवश्यकवृत्ति में दिए गए हैं। अवग्रह, अर्थात् स्थान सम्बन्धी अनुमति के पाँच प्रकार हैं - १. इन्द्र की अनुमति २. राजा की अनुमति ३. गृहपति की अनुमति ४. श्रावक की अनुमति और ५. साधर्मिक की अनुमति। गुरु के जीवनपर्यन्त चारों दिशाओं में साढ़े तीन हाथ भूमि पर गुरु का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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