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आचारदिनकर (खण्ड- ४ )
प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
१५.अनेकसिद्ध एक समय (समयकाल) में जो अनेक सिद्ध
होते हैं, अर्थात् सिद्धगति को प्राप्त करते हैं, उन्हें अकसिद्ध कहते हैं ।
इन पन्द्रह भेदों के आख्यापन हेतु नमो सयासव्वसिद्धाणं इस पद का पुनर्कथन किया गया है। यह प्रथम गाथा का विशिष्टार्थ
है ।
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सिद्धस्तव में गर्भित अन्य दो गाथाओं द्वारा वर्तमान तीर्थ के अग्रणी सिद्ध भगवान् श्री महावीरस्वामी की स्तुति की गई है। जो देवाण वि भगवान जो कि विष्णु, आदि देवों के भी देव हैं।
शंकर एवं ब्रह्मा
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जं देवा जिनको शक्र आदि देवता ।
देवदेवमहिअं - देवों के देव शिव आदि से पूजित । जिनवरवसहस्स– जिनवरों में श्रेष्ठ, प्रधान होने से जिनवर तथा महाव्रत की धुरा होने के कारण वृषभ कहा गया है, अथवा विशिष्ट अर्थ में स्वयं की जाति में श्रेष्ठ हो, उसके लिए वृषभ शब्द विशेषण के रूप में प्रयोग होता है ।
नारी यहाँ नारी शब्द का ग्रहण नारीमुक्ति के आख्यापनार्थ किया गया है।
निसीहिया - सर्व व्यापार (कर्मों) के निषेध को मोक्ष कहते हैं । उज्जित..... नम॑सामि - गोपालपुर नरेश आमराजा ने “जब तक गिरनार पर्वत पर स्थित नेमिनाथ भगवान् की प्रतिमा के दर्शन न करूं, तब तक भोजन नहीं करूंगा" - ऐसा नियम ले रखा था। वह अपने गुरु बप्पभट्टी के साथ रैवतगिरि की तलहटी पर पहुँचे, वहाँ दिगम्बर- संघ ने श्वेताम्बरों को तीर्थयात्रा करने का निषेध कर रखा था। उस अवसर पर बप्पभट्टी सूरि ने अम्बिकादेवी की आराधना की, जिससे देवी ने प्रसन्न होकर समस्या के समाधानरूप कन्या के मुख से निम्न गाथा उच्चारित करवाई, (जिसके परिणामस्वरूप यह तीर्थ दिगम्बर- संघ के हाथ से निकलकर श्वेताम्बर - संघ के हाथ में आ गया) इसीलिए गिरनार की स्तुति के लिए सिद्धस्तव के अन्त में यह गाथा बोली जाती है । " चत्तारि ' नामक इस गाथा में अष्टापदतीर्थ
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