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आचारदिनकर (खण्ड-४)
74 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि कैवल्य को प्राप्त कर सिद्ध होते हैं, उन्हें अजिनसिद्ध
कहते हैं। ३. तीर्थसिद्ध - तीर्थ की विद्यमानता में जो सिद्ध होते हैं,
उन्हें तीर्थसिद्ध कहते हैं। ४. अतीर्थसिद्ध - तीर्थ की विद्यमानता बिना अर्थात् स्थापना
के पूर्व या तीर्थ के व्यवच्छिन्न होने के पश्चात् जो सिद्ध होते हैं, उन्हें अतीर्थ सिद्ध कहते हैं। जैसे मरूदेवी माता
तीर्थ स्थापना के पहले सिद्ध हुई अतः वे अतीर्थसिद्ध है। ५. स्त्रीलिंगसिद्ध - ब्राह्मी, सुन्दरी आदि जो स्त्रीशरीर से
सिद्ध हुई हैं, उन्हें स्त्रीलिंगसिद्ध कहते हैं। ६. गृहीलिंगसिद्ध - भरत चक्रवर्ती, इलायचीकुमार आदि जो
गृहस्थावस्था में ही, अर्थात् व्रतग्रहण किए बिना ही सिद्ध हुए, उन्हें गृहीलिंगसिद्ध कहते हैं। ७. अन्यलिंगसिद्ध - परिव्राजकादि के वेश में कैवल्य को प्राप्त
कर सिद्ध होने के कारण वे अन्यलिंगसिद्ध कहलाते हैं। ८. सलिंगसिद्ध - जो साधुवेष में सिद्ध हुए हैं, उन्हें
सलिंगसिद्ध कहते हैं। ६. नरसिद्ध - जो पुरुषलिंग में सिद्ध हुए हैं, उन्हें नरसिद्ध
कहते हैं। १०. नपुंसकसिद्ध - जो नपुंसकलिंग में सिद्ध हुए हैं, उन्हें ___ नपुंसकसिद्ध कहते हैं। ११. प्रत्येकबुद्ध - करकंडु आदि की तरह किसी निमित्त से
बोध को प्राप्तकर सिद्ध हुए हों, उन्हें प्रत्येकबुद्ध कहते
१२. स्वयंबुद्धसिद्ध - जो गुरु के बिना स्वयं ही बोध का प्राप्त
कर सिद्ध होते हैं, उन्हें स्वयंबुद्धसिद्ध कहते हैं। १३. बुद्धबोधितसिद्ध - जो गुरु से बोध प्राप्तकर सिद्धगति में
जाते हैं, उन्हें बुद्धबोधितसिद्ध कहते हैं। १४.एकसिद्ध - जो एक समय में अकेले ही बिना किसी के
साथ सिद्ध हों, उन्हें एकसिद्ध कहते हैं।
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