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जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 427
अर्थात् अत्यन्त मूल्यवान् हैं।" उस समय अभयकुमार मौन रहा। फिर अपने कथन को सिद्ध करने के लिए अभयकुमार ने राजा से कहा- “हे तात! केवल पाँच दिन के लिए मैं राज्यसिंहासन पर बैठना चाहता हूँ।" राजा ने प्रजाजनों को बुलवाकर कहा- “मेरे सिर में तेज दर्द हो रहा है, इसलिए कुछ दिन के लिए अभयकुमार को राज्यसिंहासन पर स्थापन करता हूँ।" तत्पश्चात् राजा अन्तःपुर में रहने लगा।
अभयकुमार ने जीवों को अभयदान देते हुए राज्य में अहिंसा-पालन की उद्घोषणा करवाई। इस तरह पाँचवां दिन बीतने पर उस रात को अभयकुमार सामान्य वेश धारण कर सामन्तों एवं मन्त्रियों के घर गया। वे मन्त्री अभयकुमार को पहचानकर पूछने लगे- “नाथ! इस तरह रात्रि में पधारने का क्या कारण है?" तब अभयकुमार ने कहा- "राजा श्रेणिक मस्तक की वेदना से अत्यन्त पीड़ित हैं, उनके लिए वैद्यों ने उत्तम पुरुषों के कलेजे के मांस की औषधि बताई है। आप शीघ्रतापूर्वक अपने कलेजे का तीन जौ जितना मांस दे दो।" मन्त्रियों ने सोचा कि अभयकुमार प्रकृति से तो धनलोलुप है ही, अतः उसे रिश्वत (लाँच) देकर हम क्यों न छूट जाएं।" ऐसा विचार कर उन्होंने अपनी रक्षा के लिए अभयकुमार को रात्रि में अठारह करोड़ सोने की मोहरें (स्वर्णमुद्राएं) दे दी।
___ पाँच दिन पूर्ण होने पर छठवें दिन प्रभातकाल में अभयकुमार ने अपने पिता को पुनः राज्य पर स्थापित किया और राजसभा में अठारह करोड़ सोने
की मोहरों का ढेर लगा दिया। विपुल धन को देखकर विस्मित हुआ श्रेणिक राजा विचार करने लगा कि निश्चय ही इस अभय ने राज्य के लोगों को लूटकर निर्धन बना दिया है, अन्यथा इतनी विपुल सम्पत्ति कहाँ से प्राप्त होती? नगर के लोगों की मनोदशा को जानने के लिए राजा ने अपने गुप्तचरों को सभी मार्गों एवं बड़े-बड़े स्थानों पर नियुक्त करने के लिए आदेश दिया। नगर के सभी गृहों में नगरजनों के मुख से अभयकुमार की यशोगाथा एवं जय-जयकार ध्वनि के शब्द सुनकर गुप्तचरों ने राजा को सम्पूर्ण वस्तुस्थिति से अवगत कराया। मन से व्याकुल बने राजा ने अभयकुमार से पूछा- "हे पुत्र! इतनी विशाल धनराशि कहाँ से प्राप्त की है?" अभयकुमार ने विस्मित मन वाले पिता को तीन जौ के दानों के प्रमाण जितने मांस की याचना से सम्बन्धित सारा वृत्तान्त यथावत् सुनाया। उसके पश्चात् राजा सहित सभी लोगों ने निर्विवाद रूप से मांस को अत्यन्त महंगा और अतिदुर्लभ के रूप में स्वीकार किया।
मांस खानेवालों का इस लोक में अनादर होता है तथा जन्मान्तर में उन्हें दरिद्रता एवं नीचकुल की प्राप्ति होती है, अतः अनेक दोषों से युक्त मांस को मन से भी खाने की इच्छा नहीं करना चाहिए। व्यक्ति लाखों गायों अथवा स्वर्णमुद्राओं
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