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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 387 किसी एक समय मुनि छोटी नदी को पार करने के लिए लम्बा डग भरकर जाने लगे, तब उस यक्षिणी ने, जो मुनि से वैर लेना चाहती थी, मुनि की जंघा काट दी। उस समय वे मुनि 'अहो ! मेरे द्वारा अप्काय जीवों की विराधना न हो' - ऐसा शुभ चिन्तन करने लगे। तब किसी समकित देवी ने उस यक्षिणी को पराजित कर मुनि की जंघा को जोड़कर उसे पुनः अखण्ड बना दिया। इस तरह राग से वैराग्य में प्रवृत्ति करनेवाले ने सद्गति प्राप्त की और राग से पराजित बनी यक्षिणी विडम्बना की पात्र बनी । इसलिए, मुक्ति या सिद्धि को प्राप्त करने के लिए जिनवचनरूपी निर्मल जल से कामासक्ति को शान्त कर अन्तिम आराधना करना चाहिए। उत्तम रत्नों के समूह के सामने जैसे काँच की मणियाँ शोभायमान नहीं होती हैं, वैसे ही आसक्तिरहित व्यक्ति के सामने देवों अथवा मनुष्यों के श्रेष्ठ सुख भी नगण्य होते हैं। इस कथा के माध्यम से यह बताया गया है कि जब किसी पदार्थ या प्राणी के प्रति आकर्षण पैदा होता है, तो उसे राग कहते हैं। राग तीन प्रकार का होता है- स्नेहराग, कामराग और दृष्टिराग । आत्महित के भाव से किए गए निःस्वार्थ प्रेम (प्रशस्तराग) को छोड़कर अन्य सर्वप्रकार के राग संसार परिभ्रमण कराने वाले कहे गए हैं। इच्छा भी राग का एक रूप है, क्योंकि भोगेच्छा का संस्कार जन्म-जन्मान्तर तक चलता है। इस सन्दर्भ में संवेगरंगशाला में अर्हन्नक की पत्नी एवं अर्हमित्र की कथा वर्णित है। कामराग के सन्दर्भ में दी गई यह कथा हमें आवश्यकचूर्णि (भाग १, पृ. ५१४), आवश्यकवृत्ति (पृ. ३८८), गच्छाचार्यप्रकीर्णकवृत्ति (पृ. २६), आदि ग्रन्थों में भी उपलब्ध होती है। कपिल ब्राह्मण की कथा लोभ सर्व दुःखों का मूल है तथा यह दुर्गति में ले जानेवाला राजमार्ग है, अतः लोभ का त्याग ही श्रेयस्कर है। इस सन्दर्भ में संवेगरंगशाला में कपिल ब्राह्मण की निम्न कथा वर्णित है - 785 कौशाम्बी नगरी में यशोदा नाम की एक ब्राह्मणी रहती थी। उसको कपिल नाम का एक पुत्र था। पुत्र की अल्प आयु में ही उसके पिता का देहान्त 785 ܀܀ संवेगरंगशाला, गाथा ६०३३-६०६४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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