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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 321 जैसे ही उस स्तूप को तोड़ा, वैसे ही राजा ने उस नगरी पर हमला कर उसे अपने अधिकार में कर लिया। इस प्रकार गुरु के प्रति द्वेष करने से कुलबालक मुनि ऐसे महापाप का भागी बना, अतः आराधक को सदैव ही गुरु आज्ञा का पालन करना चाहिए। प्रस्तुत कथा में कहा गया है कि गुरु की सेवा-शुश्रूषा करने में तत्पर एवं अपने अल्पतम अपराधों की भी निन्दा एवं सविशेष आराधना में तल्लीन मुनि सद्गति को प्राप्त करता है एवं इससे विपरीत आचरण करनेवाला मुनि दुर्गति को प्राप्त करता है। इसी सम्बन्ध में संवेगरंगशाला में उपर्युक्त कुलबालकमुनि का दृष्टान्त प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत दृष्टान्त हमें आवश्यकचूर्णि (भाग २, पृ.७४), आवश्यकवृत्ति (पृ.६८५), उत्तराध्ययनवृत्ति (पृ. ५), बृहत्कल्पभाष्य (२१६४५) तथा स्थानांगवृत्ति (पृ. १८५) में भी उपलब्ध होता है। अज्ञदत्त और सुरेन्द्रदत्त की कथा ज्ञान से ही मनुष्य विश्व में गौरव प्राप्त करता है। इस विषय पर संवेगरंगशाला में इन्द्रदत्त के पुत्र अज्ञदत्त और सुरेन्द्रदत्त की कथा प्रस्तुत की गई है।52 इन्द्रपुर नगर में इन्द्रदत्त नाम का एक राजा रहता था। उसकी बाईस रानियाँ तथा बाईस पुत्र थे। एक समय उस राजा ने घर पर क्रीड़ा करती हुई रति के समान एक सुन्दर बाला को देखकर अनुचर से पूछा- “यह किसकी पुत्री है?" अनुचर ने कहा- “यह मन्त्रीश्वर की पुत्री है।" उसके प्रति रागी बने राजा ने मन्त्री से उस बाला की याचना कर उससे विवाह किया और उसे अपने अन्तःपुर में दाखिल कर लिया। तत्पश्चात् अन्यान्य स्त्रियों के साथ भोग-विलास में रत होकर वह उसे भूल गया। एक दिन उसे खिड़की में बैठी देखकर राजा ने कंचुकी से पूछा- “यह कमल के समान नेत्रोंवाली सुन्दर स्त्री कौन है?" कंचुकी ने कहा“यह तो मन्त्री की पुत्री है, जिसको आपने पूर्व में विवाह कर छोड़ दिया है।" उसी रात्रि में राजा उसके साथ रहा और वह गर्भवती बनी। मन्त्री द्वारा उसके गर्भवती होने का कारण पूछने पर उसने सारा वृत्तान्त कहा। मन्त्री ने वह वृत्तान्त भोजपत्र पर लिखकर रख दिया। समय पूर्ण होने पर 752 संवेगरंगशाला, गाथा १३६५-१४२३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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