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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 265 अध्ययन का क्या लाभ?"590 संवेगरंगशाला में ग्रन्थकार ने शुभ एवं अशुभ- दोनों प्रकार के भावों को स्वाधीन बताते हुए कहा है- संसार में ऐसा कौन पण्डित व्यक्ति होगा, जो स्वाधीन शुभरूपी अमृत को छोड़कर अशुभरूपी जहर को स्वीकार करेगा, अतः कहा भी गया है, जो निश्चय से एकान्त शुभभाव है, वही भावना है और जो भावना है, वही एकान्त शुभभाव है।" जैन-आचार्यों ने भावनाओं को मोक्ष का सोपान कहा है। अनेक जैन-ग्रन्थों में भावनाओं पर चर्चा की गई है, जिनमें से कुछ प्रमुख ग्रन्थ हैंउत्तराध्ययनसूत्र 592 , भावप्राभृत 59 , भगवतीआराधना 594 , योगशास्त्र , बारस्स-अणुवेक्खा, कार्तिकेया-अनुप्रेक्षा,97 आदि। संवेगरंगशाला में बारह भावनाओं या अनुप्रेक्षाओं का उल्लेख किया गया है- वे भावनाएँ निम्न हैं - १. अनित्य-भावना २. अशरण-भावना ३. संसार-भावना ४. एकत्व-भावना ५. अन्यत्व-भावना ६. अशुचि-भावना ७. आश्रव-भावना ८. संवर-भावना ६. कर्मनिर्जरा-भावना १०. लोक भावना ११. बोधिदुर्लभ भावना और १२. धर्मगुरु-दुर्लभता-भावना।595 इन बारह भावनाओं का चिन्तन करने से संवेग (वैराग्य) प्रकट होता है। चिन्तन-धारा का सम्यक् नियमन ही बारह भावनाओं का मूल प्रतिपाद्य है, क्योंकि इस प्रकार के चिन्तन से ही वैराग्योत्पादक सम्यक् दिशाबोध प्राप्त हो सकता है। यदि हम वैराग्योत्पादक एवं तत्त्वपरक-दृष्टि से अध्ययन करें, तो सहज ही पाएंगे कि उपर्युक्त बारह भावनाओं में से आरम्भ की छः भावनाएं वैराग्योत्पादक और अन्त की छः भावनाएँ तत्वपरक हैं। इनके क्रम में भी एक सहज विकास दृष्टिगोचर होता है। यहाँ हमें भाव और भावना के अन्तर को समझ लेना होगा। भाव एक विचार है, मन की तरंग है। वह जल की बून्द की तरह है। जब भाव प्रवाहरूप 590 भावप्राभृत, गाथा ६६. 591 संवेगरंगशाला, गाथा ८५५६-८५५६. उत्तराध्ययनसूत्र . १६ अ भावप्राभृत. गाथा ६४ भगवतीआराधना, १७१०. योगशास्त्र, ४/५५-५६. 900 बारस्स अणुवेक्खा, गाथा-६०. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, १/२. 598 संवेगरंगशाला, गाथा ८५६०-८५६२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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