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गया है। पाँचवें अध्याय में संवेगरंगशाला की आराधना से सम्बन्धित कथाओं का संक्षेप में उल्लेख प्रस्तुत किया गया है। साथ ही कथा का प्रयोजन और उनके मूल स्रोत आगमिक-व्याख्या-साहित्य में एवं समाधिमरण से सम्बन्धित ग्रन्थों में कहाँ-कहाँ हैं, इसका भी हमने अन्वेषण करने का प्रयास किया है। अन्तिम छठवें अध्याय में समस्त अध्यायों पर उपसंहाररूप अपने चिन्तन का प्रस्तुतीकरण करते हुए सभी अध्यायों का सार संकलित किया गया है।
इस प्रकार छ: अध्यायों से युक्त इस शोध-प्रबन्ध की प्रस्तुति-वेला में निश्चित ही मैं आन्तरिक आनन्द और आह्लाद का अनुभव कर रही हूँ।
समाधिमरण के स्वरूप पर आज तक बहुत लिखा जा चुका है। यह विषय इतना गहरा और विस्तृत है कि इस पर जितना लिखा जाएगा, थोड़ा ही होगा, क्योंकि समाधिमरण, अर्थात् अन्तिम आराधना जीवन-निर्माण की जड़ है। फिर भी मैं महसूस करती हूँ कि इस शोध का अपना कुछ मूल्य और उपयोग अवश्य होगा।
समाधिमरण, अर्थात् अन्तिम आराधना जैसे गूढ़ विषय के चुनाव पर यद्यपि मुझे शास्त्रीय-ज्ञान की अल्पज्ञता का भान था, फिर भी मुझे अपने शोध-कार्य के लिए यही विषय उपयुक्त लगा। मैं इस शोधकार्य को अपनी संयम-साधना का ही एक अंग मानती हूँ और विश्वास करती हूँ कि इस अध्ययन से मेरी साधना ही सम्पुष्ट हुई है।
- साध्वी प्रियदिव्यांजनाश्री
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