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222 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री मोक्षरूपी फल को प्राप्त करती है। इस प्रकार अनुशास्तिद्वार के पाँच प्रतिद्वारों में त्याग करने योग्य एवं तेरह प्रतिद्वारों में आचरण करने योग्य विषयों का प्रतिपादन किया गया है, वे इस प्रकार हैं 497 :
(अ) त्याग करने योग्य विषय :- १. अट्ठारह पापस्थानक २. आठ मद स्थान ३. क्रोधादि चार कषाय ४. प्रमाद और ५. विघ्नों का त्याग-ये पाँच निषेध-द्वार हैं।
(ब) आचरण करने योग्य शिक्षाएँ :- १. सम्यक्त्व में स्थिरता २. अरिहंत, आदि की भक्ति ३. पंचपरमेष्ठि-नमस्कार में तत्परता ४. सम्यग्ज्ञान की उपलब्धि ५. पाँच महाव्रतों की रक्षा ६. क्षपक के द्वारा चार शरण का स्वीकार ७. दुष्कृतों की गर्दा करना ८. सुकृत की अनुमोदना करना ६. बारह भावना से युक्त होना १०. शील का पालन करना ११. इन्द्रियों का दमन करना १२. तप में उद्यमशीलता और १३. निःशल्यता।
अठारह पापों का स्वरूप और क्षपक द्वारा उनका त्याग :- जो अशुभ कर्म आत्मा को मलिन करते हैं, वे पाप कहलाते हैं तथा जिन अशुभ कमों से आत्मा मलिन होती है, उन्हें पापस्थान कहते हैं। ये पापस्थान अठारह हैं। वे इस प्रकार हैं:-498
१. प्राणीवध २. अलीक-वचन (असत्य) ३. अदत्तग्रहण ४. मैथुनसेवन ५. परिग्रह ६. क्रोध ७. मान ८. माया ६. लोभ १०. प्रेम (राग) ११. द्वेष १२. कलह १३. अभ्याख्यान १४. अरति -रति १५. पैशुन्य १६. पर-परिवाद १७. माया-मृषावचन और १८. मिथ्यादर्शन-शल्य।
१. प्राणीवध :- श्वासोश्वास आदि दस प्राणों का वध करना, वियोग करना, छेदन आदि करना प्राणीवध कहलाता है। प्राणीवध को अनेक उपमाओं से उपमित किया गया है। प्राणीवध अत्यन्त दुर्गम दुर्गतिरूपी पर्वत की गुफा का बड़ा प्रवेश-द्वार है, संसाररूपी भट्टी में तपे हुए अनेक प्राणियों को लोहे के हथौड़े से मारने के लिए एरण है, क्षमा, आदि गुणरूप धान्य को पीसने के लिए मजबूत चक्की है तथा नरकरूपी तालाब में अथवा गुफा में उतरने के लिए सरल सीढ़ी है। इस तरह जीव हिंसा करनेवाला उसी जन्म में वध, बन्धन, निर्धनता को प्राप्त
497 संवेगरंगशाला, गाथा ५५६३-५५७४. 498 संवेगरंगशाला, गाथा ५५७५-५५८०.
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