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176 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री १०. बालपण्डितमरण ११. छट्यस्थमरण १२. केवलीमरण १३. वेहायसमरण १४. गृद्धपृष्ठमरण १५. भक्तपरिज्ञामरण १६. इंगिनीमरण और १७. पादपोपगमनमरण.344
समवायांगसूत्र में भी मरण के उपर्युक्त सत्तरह प्रकारों के नामों का उल्लेख मिलता है। इससे यह निश्चित होता है कि ग्रन्थकर्ता जिनचन्द्रसूरि ने मरण के इन भेदों का उल्लेख इसी आगम-ग्रन्थ के आधार पर किया है। समवायांग में तथा संवेगरंगशाला में मरण के इन नामों एवं उनके अनुक्रम की समानता दृष्टिगोचर होती है।
इसी तरह दिगम्बर-परम्परा में मान्य यापनीय-सम्प्रदाय के ग्रन्थ भगवतीआराधना में भी मरण के निम्न सत्तरह प्रकारों का विवेचन किया गया है। भगवतीआराधना के अनुसार :१. अवीचिमरण २. तद्भवमरण ३. अवधिमरण ४. आद्यन्तमरण ५ बालमरण
६. पण्डितमरण ७. आसण्णमरण ८. बालपण्डितमरण ६. सशल्लमरण १०. बालायमरण ११. वसट्टमरण
१२. विप्पाणसमरण १३. गिद्धपृष्ठमरण १४. भक्तप्रत्याख्यानमरण १५. इंगिनीमरण १६. प्रायोपगमनमरण और १७. केवलीमरण।346
संवेगरंगशाला एवं भगवतीआराधना में मरण के इन सत्तरह प्रकारों में सामान्य तौर पर तो समानता ही दृष्टिगोचर होती है, लेकिन कहीं-कहीं कुछ नामों में एवं उनकी क्रम-संख्या में कुछ विभिन्नता भी दिखाई देती है।
उदाहरणस्वरूप- भगवतीआराधना में अवधिमरण के दो विभाग - १. देशावधिमरण और २. सर्वावधिमरण मिलते हैं, लेकिन संवेगरंगशाला में अवधिमरण का इस तरह स्पष्ट वर्गीकरण नहीं हुआ है। संवेगरंगशाला में छद्मस्थमरण का उल्लेख है, जबकि भगवतीआराधना में इस नाम के किसी मरण का उल्लेख नहीं मिलता है। भगवतीआराधना में आसण्णमरण की चर्चा है,
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संवेगरंगशाला, गाथा ३४४४-४५
समवायांग, १७/१२१. 540 मरणाणि सत्तरस देसिदाणि तित्थकरेहिं जिणवयणे। भगवतीआराधना, गाथा २५.
तत्व वि य पंच इह संगहेण मरणाणि वोच्छामि।।
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