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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 169 ८. विद्याद्वार :- संवेगरंगशाला में मृत्युकाल को जानने के ग्यारह उपाय बताए गए हैं, उनमें ग्यारहवें उपाय का नाम विद्याद्वार कहा गया है। अन्य द्वारों की तरह विद्या-मन्त्र के द्वारा भी मृत्युकाल को जाना जा सकता है। इस मन्त्र की सहायता से व्यक्ति स्व एवं पर - दोनों के मृत्युकाल को सम्यक् प्रकार से जान सकता है। इस मन्त्र की स्थापना करने से पूर्व मन, वाणी एवं शरीर को शुद्ध बना ले, पश्चात् एकाग्रतापूर्वक शिखास्थान में “स्वाह", मस्तक में "ॐ", दोनों आखों में “क्षि", हृदय में “प", और नाभि में "हा" - इन अक्षरों की स्थापना करे। फिर निम्न मंत्र का जाप करे - "ऊँ जुसः ऊँ मृत्युंजयाय, ऊँ वज्रपाणिने, शूलपाणिने। हर हर, दह दह, स्वरूपं दर्शय दर्शय हूं फट्।।"327 __ इस तरह प्रस्तुत कृति में ग्रन्थकार ने यह कहा है कि "इस विद्या को एक सौ आठ बार जाप करके पहले अपने नेत्रों को मन्त्रित करे। फिर अरुणोदय के समय सूर्य की तरफ पृष्ठभाग करके एवं पश्चिम दिशा की तरफ मुख करके स्वयं की अथवा अन्य की छाया को देखे। यदि वह छाया अखण्ड रूप से दिखाई देती है, तो समझना वह व्यक्ति अभी एक वर्ष और जीवित रहेगा। यदि परछाई में पैर, जंघा, घुटने, आदि अंग दिखाई न दें, तो दस मास के अन्दर एवं पेट नहीं दिखाई दे, तो पाँच-छ: माह के अन्दर उस व्यक्ति की मृत्यु निश्चित रूप से हो जाती है- ऐसा समझना चाहिए।"328 इसी तरह गर्दन नहीं दिखने से, चार, तीन, दो या एक मास के बाद, बगल नहीं दिखे, तो पन्द्रह दिन के बाद एवं भुजा नजर में नहीं आए, तो दस दिन के बाद वह व्यक्ति परलोक की यात्रा करता है। इसमें ही आगे यह उल्लेख मिलता है कि कन्धा नहीं दिखने से आठ दिन में, हृदय में छिद्र दिखने से चार महीने में मृत्यु को प्राप्त होता है।"329 “संवेगरंगशाला की तरह ही योगशास्त्र में भी विद्याद्वार का विवेचन समान रूप में मिलता है, किन्तु उसमें हृदय के नहीं दिखाई देने पर चार प्रहर के बाद मृत्यु का उल्लेख किया गया है,330 जबकि संवेगरंगशाला में चार महीने के बाद का वर्णन प्राप्त होता है। 327 संवेगरंगशाला, गाथा ३३१३-३३१६. संवेगरंगशाला, गाथा ३३१७-३३१८. 329 संवेगरंगशाला, गाथा ३३१९-३३२१. योग-शास्त्र, पंचमप्रकाश २१६-२२४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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