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________________ 130 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री ६. गुरुपूजा अभ्युत्थान :- गुरु के आगमन पर वन्दना, आदि के द्वारा गुरु का सत्कार-सम्मान करे। १०. उपसम्पदा :- आचार्य, आदि की सेवा में विनम्रभाव से रहते हुए अपनी दिनचर्या करे। संवेगरंगशाला में उत्तराध्ययन के समान ही दसों सामाचारियों का एक साथ उल्लेख हमें प्रथम परिकर्मविधि-द्वार के तीसरे शिक्षाद्वार में संक्षिप्त रूप में प्राप्त होता है। वहाँ केवल इच्छाकार, मिथ्याकार, आदि प्रारम्भ करके उपसम्पदा तक साधु की दस सामाचारी कही गई हैं.10 वहाँ दसों सामाचारियों के नाम और उनके विवरण उल्लेखित नहीं हैं, किन्तु उसके अलग-अलग द्वारों में पृच्छा, प्रतिपृच्छा, उपसम्पदा, आदि का विवेचन हुआ है। इन दस सामाचारियों का सम्बन्ध मुनि-जीवन की सामान्य आराधना से है, चूँकि संवेगरंगशाला का मुख्य प्रतिपाद्य अन्तिम आराधना है, इसलिए आचार्य जिनचन्द्रसूरि ने इनका एकसाथ विस्तृत उल्लेख नहीं किया है, फिर भी यह सुनिश्चित है कि आगमिक-साध्वाचार के पालन के प्रति उनकी जो निष्ठा रही है, उसे देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि ये सामाचारी उन्हें भी मान्य रही हैं। स्वयं उन्होंने यह कहा है कि ये दस प्रकार की सामाचारी सुविहित साधुजनों के लिए पालनीय हैं। बारह प्रकार के तप : जैन-साधना का लक्ष्य मोक्ष या शुद्ध आत्मतत्त्व की उपलब्धि है और वह केवल तपसाधना (अविपाक-निर्जरा) से ही सम्भव है। जैन-साधना में तप का क्या स्थान है, इस तथ्य के साक्षी जैनागम ही नहीं हैं, वरन् बौद्ध और हिन्दू-आगमों में भी जैन-साधना के तपोमय स्वरूप का वर्णन उपलब्ध होता है। 212 उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि आत्मा की शुद्धि तप से होती है। 213 संवेगरंगशाला में चतुर्थ आराधना तपाराधना है। 14 जावि य इच्छामिच्छ-प्पमुहा उवसंपयाऽवसाणाओ.सुविहिय जणपाउग्गा, सामायारी दसपयारा।। संवेगरंगशाला, गाथा १५८. " संवेगरंगशाला, गाथा क्र. -४८४४-४८५३/४८५४-६६/४७१५-४७२७. 212 (अ) श्रीमद्भागवत् , ५/२, (ब) मन्झिमनिकाय-चूल दुक्खक्खन्थ सुत्त। 1 उत्तराध्ययन, ३०/६. 214 विंगरंगशाला, गाथा ६१३-६२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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