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86/ साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री
२. वध :- अपने आश्रित व्यक्तियों को या अन्य प्राणियों को लकड़ी, चाबुक, पत्थर, आदि से मारना एवं किसी की लाचारी का अनावश्यक लाभ उठाना आदि वध है।
३. छविच्छेद :-किसी प्राणी के अंगों को काटना।
४. अतिभार :- बैल, ऊँट, घोड़ा, आदि पशुओं पर या अनुचर पर उनकी शक्ति से अधिक बोझ लादना, अथवा कार्य करवाना अतिभार है।'
५. भक्तपान-विच्छेद :- पशुओं या दासों को समय पर भोजन न देना, नौकर को समय पर वेतन न देना अन्नपान विच्छेद है। अहिंसा के उपासक को इन अतिचारों से सदा बचना चाहिए। २. सत्याणुव्रत :- आचार्य उमास्वाती ने अनृत की व्याख्या करते हुए कहा है “असदभिधानं अनृतम्।"2 असदभिधान के तीन अर्थ हैं- १. असत्, अर्थात् जो बात नहीं है, उसको कहना। २. जैसी बात है, वैसी न कहकर दूसरे रूप में कहना। ३. असत्, बुराई या दुर्भावना को लेकर किसी से कहना। मानव अनेक कारणों से स्थूल असत्य का प्रयोग करता है। उपासकदशा एवं योगशास्त्र में स्थूल असत्य के मुख्य पाँच भेदों का निर्देश है। वे निर्देश ये हैं- १. कन्या के सम्बन्ध में २. गाय (पशु) के सम्बन्ध में ३. भूमि के सम्बन्ध में ४. न्यास-धरोहर के सम्बन्ध में एवं ५. मिथ्या साक्ष्य देने के लिए असत्य का प्रयोग करना। सत्याणुव्रत के पाँच अतिचार या दोष :१. अविचारपूर्वक बोलना या मिथ्या दोषारोपण करना।
गोपनीयता भंग करना।
स्वपत्नी या मित्र के गुप्त रहस्यों को प्रकट करना। ४. मिथ्या उपदेश, अर्थात् लोगों को बहकाना।
५. कूटलेखकरण, अर्थात् झूठे दस्तावेज तैयार करना, नकली मुद्रा(मोहर) लगाना, या जाली हस्ताक्षर करना।
पुऽविदगाढ़गणिपवणे, वणे य पत्तेयऽणंतस्वम्मि, बितिचउपंचिदियगोय-र पि अइयारमाऽऽलोए। संवेगरंगशाला, गाथा ३०३२. 9 तत्वार्थसूत्र ७/६,
उपासकदशा १/१४, योगशास्त्र २५४/५५
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