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जैन-दर्शन के नव तत्त्व जीवस्स एस धम्मो जा इही अस्थि नत्थि वा जीवो। खाणु मणुस्साण गया जह इही देवदत्तस्स ।। अस्थि सरीर विहाया पइनिययागार याइ भावाओ। कुम्भस्स जह कुलालो सो भुत्तो कम्भजो गाओ।। जो चिंतेइ सरीरे नत्थि अहं स एवा होइ जीवोत्ति। बहु जीवम्मि असन्ते संसय उप्पायव्यो अन्नो।।
विशेषावश्यकभाष्य१०३- देवेन्द्रमुनिशास्त्री - जैन-दर्शन स्वरूप और विश्लेषण, पृ० १२० १०४. मुनि श्री नगराजजी - जैन-दर्शन और आधुनिक विज्ञान, पृ० ७३-७५
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