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जैन-दर्शन के नव तत्त्व औदारिकवैक्रियाऽऽहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि ।। ३७ ।। उमास्वाति-तत्त्वार्थसूत्र,अ०५, सू०१६ प्रदेशसंहारविसर्गाभ्यां प्रदीपवत्। १६ । (क) जैनाचार्य श्रीनेमिचन्द्र-बृहद्रव्यसंग्रह, गा०१०, पृ० २० अणुगुरूदेहपमाणो उवसंहारप्पसप्पदो चेदा। असमुहदो ववहारा णिच्छयणयदो असंखदेसो वा ।। १० ।। (ख) भट्टाकलंकदेव-तत्त्वार्थराजवार्तिक (भाग-२), अ०५,सू०१६, पृ० ४५८-५६ पं० बेचरदास दोशी-जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (भाग-१), पृ० १६८
जैनाचार्य श्रीनेमिचन्द्र - बृहद्रव्यसंग्रह, गा०२, पृ० ७ जीवो उवओगमओ अमुत्ति कत्ता सदेहपरिमाणो। भोत्ता संसारत्थो सिद्धे सो विस्ससोड्ढगई ।। २ ।। (क) श्वेताश्वतरोपनिषद् - अ० १, पृ० १३४ (गीताप्रेस, गोरखपुर) सर्वव्यापिनमात्मानं। (ख) श्वेताश्वतरोपनिषद् - अ०३, पृ० १७६ अंगुष्टमात्रः पुरुषोऽन्तरात्मा। पं० श्री द०वा० जोग - भारतीय दर्शन संग्रह, पृ० १७० डॉ० जगदीशचन्द्र जैन व डॉ० मोहनलाल मेहता, जैन-साहित्य का बृहद् इतिहास (भाग २), पृ० ६७ सं० प्रो० देवीदास दत्तात्रेय वाडेकर - मराठी तत्त्वज्ञानमहाकोश, खण्ड तृतीय, पृ० १६७-६८ संदर्भग्रंथ : उमास्वाति, तत्त्वार्थाधिगमसूत्र; जैन, हीरालालः भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान (भोपाल १६६२); शास्त्री, कैलाशचन्द्र : जैनधर्म (मथुरा, १६५५); मेहता, मो० : जैनदर्शन (आगरा, १६५६)। सं० शोभाचन्द्र भारिल्ल - मुनि श्री हजारीमल स्मृतिग्रंथ - श्री कन्हैयालाल लोढ़ा - जैनदर्शन और विज्ञान - पृ० ३२६-३३१ सं० सुशीला अग्रवाल, निर्मला देशपांडे, कुसुम देशपांडे, मीरा भट्ट, कालिन्दी - मासिक पत्रिका "मैत्री" दिसंबर १६७५ बुधमल शामसुखा - पाक्षिक पत्रिका "अणुव्रत", १६ अप्रेल १६७३ ले० भानीराम वर्मा “अग्निमुख : विज्ञान और दर्शन", पृ० २३-२५ जैनाचार्य श्रीविजयलक्ष्मणसूरश्वरीजी महाराज - आत्मतत्त्वविचार, पृ० २ अस्थि जिओ तह निच्चा, कत्ता भोत्ताय पुन्नपावाणं।
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