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________________ ५४ जैन-दर्शन के नव तत्त्व भारतीय दार्शनिकों ने कहा है कि जीवन का परम लक्ष्य सच्चिदानंद और शुद्ध बुद्ध अवस्था को प्राप्त करना है। ___ भारतीय ऋषि-मुनियों ने जिसका सम्यक् शोधन किया, जिसे प्राप्त किया, जिसे कहा, उसके पीछे सत्य और प्रामाणिकता के शाश्वत आधार थे। आज भी निश्चित रूप से जड़ पर चेतन की, विज्ञान पर दर्शन की, पश्चिम पर पूर्व की सर्वमान्य विजय है। सन्दर्भ १. कुन्दकुन्दाचार्य - पंचास्तिकाय गा० ४ पृ० ११ जीवा पुग्गलकाया धम्माधम्मा तहेव आयासं अत्थित्तम्हि य णियदा अणण्णमश्या अणुमंहता ।। ४ ।। नेमिचन्द्राचार्य - बृहद्रव्यसंग्रह - गा० १५ पृ० ४४ (क) अज्जीवो पुण णेओ पुग्गलधम्मो अधम्म आयासं। कालो पुग्गल मुत्तो स्वादिगुणी अमुति सेसा हु ।। १५ ।। (ख) हरिभद्रसूरी - षड्दर्शनसमुच्चय - पृ० २११ गा० ४७ (क) सं० पुप्फभिक्खू - सुत्तागमे (ठाणे) - अ० ६ पृ० २६५ (भाग १) नव सव्भावपयत्था पन्नता ते जहाँ जीवा अजीवा पुण्णं पावो आसवो संवरो णिज्जरा बंधो मोक्खो ।। ८६७ ।।। (ख) नेमिचन्द्राचार्यसिद्धान्तचक्रवर्ती - गोम्मटसार (जीवकाण्ड), गा० ६२० णव य पदत्था जीवाजीवा ताणं च पुण्णपावदुर्ग। आसवसंवरणिज्जरबंधा मोक्खो य होंति त्ति ।। ६२० ।। ग) कुन्दकुन्दाचार्य - पंचास्तिकाय, गा० १०८ पृ० १७१ जीवाजीवा भाव पुण्णं पावं च आसवं तेसिं। संवरणिज्जरबधो मोक्खो य हवांति ते अट्ठा ।। १०८ ।। (क) महेन्द्र कुमार - जैनदर्शन - पृ० २१४-२१५ (ख) पातंजल योगदर्शनम् - महर्षिव्यासदेवप्रणीत भाष्य, द्वितीय, साधनपाद, सूत्र १५ पृ० १७२ यथा चिकित्साशास्त्रं चतुर्व्यहम् - गेगो गेगहेतुगगेग्यं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001676
Book TitleJain Darshan ke Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmashilashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size11 MB
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