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तिर्यंच
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तिर्यंच प्राणियों के दो भेद होते हैं- ( १ ) त्रस (चल) (२) स्थावर (अचल ) । स्थावर प्राणियों के पाँच प्रकार हैं- ( १ ) पृथ्वीकाय (२) अपकाय ( ३ ) तेजस्काय ( ४ ) वायुकाय तथा (५) वनस्पतिकाय । इनके भी उपभेद हैं। ये सूक्ष्म या स्थूल होते हैं । पृथ्वीकाय में मिट्टी, बालू, पत्थर, नमक, लोहा, ताँबा, चाँदी, सोना और हीरे समाविष्ट होते हैं । अपकाय में पानी, कुहरे के बिंदु, कुहरा आदि; तेजस्काय में अग्नि, बिजली आदि; वायुकाय मन्द हवा, जड़ हवा आदि घटक समाविष्ट होते हैं। वनस्पतिकाय में अनेकों का इकट्ठा सामान्य शरीर होता है या सब का अलग-अलग होता है।
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जैन दर्शन के नव तत्त्व
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में
त्रस जीवों के चार भेद हैं (१) द्वीन्द्रिय ( २ ) त्रीन्द्रिय (३) चतुरिन्द्रिय तथा (४) पञ्चेन्द्रिय । कीट, सीप आदि की दो इन्द्रियाँ ( स्पर्श और रस) होती हैं । खटमल आदि की तीन इन्द्रियाँ (स्पर्श, रस और प्राण ) होती हैं । मक्खी, मच्छर आदि की चार इन्द्रियाँ (स्पर्श, रस, घ्राण और चक्षु) होती हैं। मनुष्य, पशु, पक्षी आदि की पाँच इन्द्रियाँ (स्पर्श, रस, प्राण, चक्षु और कान ) होती हैं । जीवों के दो भेद हैं (१) सम्मूच्छिम यानी गर्भ के बिना सहज उत्पन्न होने वाले और (२) गर्भजयानी गर्भ में जन्म लेने वाले। इनमें से प्रत्येक के तीन-तीन भेद हैं। पानी में रहने वाले (जलचर ), जमीन पर रहने वाले (भूचर) और आकाश में रहने वाले (खेचर) । जलचर प्राणी-मछली, कछुआ, मगरमच्छ आदि हैं । स्थलचर प्राणियों के दो भेद हैं - चतुष्पाद और रेंगनेवाले । चतुष्पादों के चार प्रकार हैं- (१) मजबूत खुर वाले, यथा घोड़ा (२) दो खुरों वाले जैसे गाय । (३) अनेक खुरों वाले हाथी ( ४ ) नाखून से युक्त पंजे वाले जैसे सिंह आदि । रेंगने वाले प्राणियों के दो भेद है - ( १ ) हाथों से रेंगने वाले और (२) छाती से रेंगने वाले छिपकली आदि पहले प्रकार के हैं और साँप आदि दूसरे भेद में आते हैं । खेचरों के चार भेद हैं- (१) चर्मपक्षी ( २) रोमपक्षी (३) समुद्ग पक्षी (४) वीतत पक्षी । ७ देव
यथा
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देव एक विशिष्ट शय्या पर जन्म लेते हैं। वे गर्भ से जन्म नहीं लेते। उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती। वे परिवर्तनशील देह धारण करते हैं । पर्वत और सागर के द्वारा घिरे हुए पृथ्वी तल के अलग-अलग हिस्सों में स्वतंत्रता से संचार करते हैं और आनन्द प्राप्त करते हैं । उनमें अद्भुत पराक्रम होता है। देवों के चार भेद हैं- ( १ ) भवनवासी ( २ ) व्यन्तर ( ३ ) ज्योतिष्क और (४) वैमानिक । इनके भी
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