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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
गया था, वह प्रज्ञा द्वारा उन सारे अज्ञानों को दूर कर शुद्ध आत्मा को ग्रहण करता है, यही मोक्ष है। कर्म परद्रव्य है। शुद्धात्मा कर्म से बद्ध ही नहीं है, तो छूटने का प्रश्न ही शेष नहीं रहता। इसलिए मोक्ष भी वहाँ से निवृत्त हो जाता है।
इस प्रकार नवतत्त्व अपनी-अपनी भूमिका निभा कर निकल जाते हैं। आखिर जो कोई शेष रहता है, वह शुद्ध आत्मा है। जीव की विशुद्धता को प्रकट करने के लिए रंगभूनि पर विशुद्ध ज्ञान ही सिर्फ रहता है। कता, कर्म आदि उपाधियों से परे तथा बंध-मोक्ष के संबंध से भी परे यह आत्मा सर्वविशुद्ध ज्ञानपुंज कहा गया है।३७
यद्यपि नवतत्त्वों के इस विवेचन में पाठकों को कहीं कहीं पुनरावृत्ति दिखाई देगी, फिर भी अधिक स्पष्टीकरण के लिए यह अनिवार्य और आवश्यक ही है। नवतत्वों के इस विवेचन से जिज्ञासु को अपूर्वता, साधक को मार्गदर्शन, मुमुक्षु को सम्यग्ज्ञान, विरागी को दृढ़ता मिलेगी, यही अपेक्षा है।
नव तत्त्वों के इस विवेचन से ऐसा दिखाई देगा कि जैन दर्शन में इन नवतत्वों द्वारा मानवी जीवन की सारी प्रमुख बातों की ओर सूक्ष्मता से ध्यान दिया गया है। नवतत्वों में से पुण्य-पाप, आस्रव और बंध ये तत्त्व मनुष्य को संसार-परिभ्रमण करानेवाले हैं। संवर, निर्जरा ये तत्त्व मोक्ष तक ले जाने वाले हैं, यह भी इस अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है।
नवतत्त्वों के इस विवेचन की एक विशेषता यह भी है कि सुखासक्त सांसारिक जीवन और वैराग्यपूर्ण पारमार्थिक जीवन- ये दोनों परस्पर विरोधी बातें हैं। इनमें से एक को साधने की कोशिश की तो दूसरे की हानि होती है और सामान्य मनुष्य को ये दोनों भी साधने की इच्छा होती है, परंतु ऐसा संभव नहीं होता। इन दोनों को साध्य बनाने के लिए एक मध्य-बिंदु निकालने की कोशिश भी इस विवेचन में की गई है।
___'गीता' में भगवान श्रीकृष्ण ने निष्काम कर्मयोग के माध्यम से यह प्रयत्न किया है। परंतु भगवान महावीर अत्यंत व्यवहारवादी थे, उन्होंने इस बारे में सूक्ष्म विचार किया। मानव को संसार और वैराग्य-इनका स्वर्णिम मध्य साधने के लिए प्रथमतः अपनी सांसारिक जिम्मेदारी को पूर्ण कर और सुयोग्य मनुष्य को उनका भार सौंपकर संन्यास मार्ग की ओर मुड़ना चाहिए, क्योंकि संन्यास ग्रहण किए बिना मोक्ष की संभावना नहीं है। संन्यास धारण किए बिना मोक्ष की प्राप्ति क्वचित ही होती है, यथा 'कुम्मापुत्र'। नहीं होती ऐसा तो नहीं हैं, परंतु ऐसी बातें अपवाद रूप ही हैं। ऐसा करने से सांसारिक सुख और आध्यात्मिक कल्याण ये दोनों बातें अच्छी तरह से प्राप्त होती है। यह बात भी इन नवतत्त्वों के आधार से सूक्ष्म रीति से स्पष्ट की गई है।
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