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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
मुक्त अवस्था यह कर्म और कामना से पूर्णतः मुक्त और परम निश्चिंतता की दशा है। यह पूर्णता की अवस्था है। यह एक ऐसा विश्राम है कि जिसमें कोई भी विकार नहीं और जिसका कहीं भी अन्त नहीं। रागहीन, पूर्ण शान्ति की दशा, वीतरागता की दशा ही मोक्ष है। यहाँ भूतकालीन कर्म की शक्ति नष्ट हो जाती है। भविष्य में कोई भी कर्म नहीं जुड़ता है। वर्तमान काल में ही कर्मरहित अवस्था होती है। इस अवस्था में आत्मा देह में विद्यमान रहता है, फिर भी पुनः शरीर धारण नहीं करना पड़ता। उसमें असीम चेतना, परम-स्वातंत्र्य और अनंत ज्ञान आदि गुण विद्यमान होते हैं।
मोक्ष में आत्मा अनंत सुख में रहता है। उस सुख को कोई भी उपमा दी नहीं जा सकती। संक्षेप में कहा जाए तो इन्द्रिय विजय, आत्मसंयम और मनोनिग्रह से मोक्ष की प्राप्ति होती है, यही जैन दर्शन की विशेषता है।
जिस प्रकार नदियाँ यदि अलग-अलग स्थानों से निकल कर बहती हैं, फिर में उनका लक्ष्य समुद्र से मिलना यही होता है, उसी प्रकार सब दर्शनों में मोक्ष का स्वरूप एवं मोक्षमार्ग यद्यपि अलग-अलग है फिर भी उनका लक्ष्य एक ही है और वह है मोक्ष की प्राप्ति करना।३५
मोक्ष तत्त्व में पंद्रह प्रकार के सिद्ध, मोक्ष का कर्ता, कर्मक्षय का क्रम, मुक्त आत्माओं के विभिन्न नाम, घाती कर्म और अघाती कर्म, मुक्त जीव का कार्य, सिद्ध का स्थान और स्वरूप, मोक्ष मार्ग, सम्यक्त्व का स्वरूप और उसके आठ अंग, सम्यग्ज्ञान के भेद आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है।
जैन दर्शन में निर्दिष्ट उपरोक्त नवतत्त्वों पर जिनकी अविचल श्रद्धा होती है, उन्हें सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति होने पर सम्यक् चारित्र भी प्राप्त होता है और जिस भव्य जीव को यह रत्नत्रय प्राप्त होता है वह भव्य जीव सम्यक् चारित्र की पूर्णता से मोक्ष प्राप्त करता है।३६
जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आसव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष को जानना और मानना इसे ही सम्यग्ज्ञान तथा सम्यग्दर्शन ऐसा कहा है। परंतु यह यथार्थ रूप से इन्हें कैसे जाना जाये यह बात ध्यान में रखकर क्रमशः नौ अध्यायों में इनका विवेचन किया गया है।
संसार यह एक रंगभूमि है और ज्ञान वहाँ दर्शक के स्वरूप में उपस्थित खड़ा है। सबसे पहले जीव और अजीव मिलकर इस रंगभूमि पर प्रवेश करते हैं और इस प्रकार नाट्य करते हैं मानो वे दोनों एक ही हैं। ज्ञान उनके लक्षणों को जानकर उन्हें पहचानता है, और निश्चित रूप से यह समझता है कि ये एक ही न होकर अलग-अलग हैं। तब ये दोनों ही अलग-अलग होकर रंगभूमि पर से निकल जाते हैं।
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