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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
सम्यग्दर्शनादि तीनों के समन्वित आचरण से मोक्षरूपी फल की प्राप्ति होती है। दर्शन और चारित्र के अभाव में केवल ज्ञान से मोक्ष नहीं मिलता। ज्ञानपूर्वक क्रियारूप अनुष्ठान के अभाव में केवल श्रद्धा से भी मोक्ष नहीं मिलता। उसी तरह श्रद्धा के अभाव में केवल क्रिया से भी मोक्ष नहीं मिलता। क्योंकि श्रद्धारहित ज्ञान तथा क्रियाएँ निष्फल हैं इसलिए मोक्षमार्ग के लिए तीनों की आवश्यकता है। क्रियारहित ज्ञान व्यर्थ है। अज्ञानी की क्रिया निष्फल है। एक पहिए से (चक्र से) रथ चल नहीं सकता। इसलिए ज्ञान और क्रिया इनका संयोग आवश्यक है।
जिस प्रकार दावानल (जंगल में लगी आग) से व्याप्त वन में अंधा व्यक्ति दौड़ते-दौड़ते जल जाता है तथा पंगु मनुष्य यहाँ-वहाँ देखत-देखते जल जाता है, उसी प्रकार मात्र ज्ञान और मात्र चारित्र का पालन करने वाले जीवों की अवस्था होती है। अगर अंधा और पंगु इन दोनों ने एक दूसरे की मदद की और अंधे के कंधों पर पंगु बैट गया, तो दोनों बच सकते हैं। लंगड़ा रास्ता दिखाता हुआ ज्ञान का कार्य करता है और अंधा पैदल चलकर चारित्र की क्रिया करता है। इस प्रकार दोनों ही दावानल से बचकर इच्छित स्थान पहुँच सकते है।
जहाज चलानेवाला नाविक ज्ञान है, पवन (वायु) ध्यान है और चारित्र जहाज है। ज्ञान, ध्यान और चारित्र इन तीनों के एक साथ होने से भव्य जीव संसार-समुद्र पार करता है। ज्ञान प्रकाशक है, तप विनाशक है और चारित्र रक्षक है। इन तीनों की एकत्रित साधना से ही मोक्ष मिलता है।
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र- ये जैन साधना के तीन अंग हैं। अन्य दर्शनकार सिर्फ साधना के एक-एक अंग को प्रधानता देते हैं, परंतु जैन दर्शन ने तीनों का समन्वय किया है।
केवल शील का पालन करना, यह कल्याणकारी एकांगी आराधना है। सिर्फ ज्ञान भी उसी प्रकार की आराधना है। शील और ज्ञान इन दोनों के अभाव में कल्याण मार्ग की आराधनी नहीं हो सकती। शील और ज्ञान ये दोनों भी होने पर ही कल्याण मार्ग की सर्वागीण आराधना हो सकेंगी। जब साधना के तीनों अंग पूर्ण होती हैं, तब साध्य की सिद्धि होती है और अनिर्वचनीय, अविनाशी ऐसे मोक्ष पद की प्राप्ति होते है। पूर्ण ज्ञान और पूर्ण चारित्र का समन्वय ही मोक्ष है।६०
जो मुक्तिपद धारण करने हेतु सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र- इन तीनों का आश्रय नहीं लेता और आर्तध्यान करता है, वही अनंत चन्मों तक संसार-परिभ्रमण करता है।'' तिपाई पर रखा हुआ घड़ा सुरक्षित रहता है। किन्तु तिपाई का एक भी पैर अगर टूट जाय, तो घड़ा गिर जाता है और फूट जाता है। उसी प्रकार मोक्षरूपी कलश सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और
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