________________
३७३
जैन-दर्शन के नव तत्त्व
दृष्टि दूषित है, उसके ज्ञान और चारित्र दोनों दूषित बनते हैं। इसलिए दृष्टि अर्थ में दर्शन को प्रथम स्थान देना चाहिए।
दर्शन का दूसरा अर्थ - "श्रद्धा" ऐसा होता है। अगर दर्शन का दूसरा अर्थ 'श्रद्धा' लिया जाये, तो ज्ञान के बाद ही दर्शन का क्रम आता है। क्योंकि अविचल श्रद्धा तो ज्ञान के बाद ही हो सकती है। उत्तराध्ययन सूत्र में जहाँ दर्शन का 'श्रद्धा' अर्थ लिया गया है, वहाँ उसे ज्ञान के बाद स्थान दिया गया है। (उत्तरध्ययनसूत्र २३/३५)
उसमें कहा गया है कि ज्ञान से पदार्थ (तत्त्व) को जाने और दर्शन के द्वारा उस पर श्रद्धा करे। इस प्रकार यथार्थ-दृष्टि यह अर्थ लेने पर सम्यक् दर्शन को प्रथम स्थान देना चाहिए और 'श्रद्धा' यह अर्थ लेने पर ज्ञान को प्रथम स्थान देना चाहिए। जैन दर्शन के समान गीता और बौद्ध-दर्शन में भी ज्ञान तथा श्रद्धा यह विषय विस्तृत रूप से चर्चित किया है।
____ 'जैनेन्द्र सिद्धांत कोश' में कहा गया है कि सम्यग्दर्शन के बाद ही सम्यग्ज्ञान की आराधना करनी चाहिए। क्योकि ज्ञान यह दर्शन का फल है। जिस प्रकार प्रदीप और प्रकाश एक साथ होते हैं, फिर भी प्रकाश यह प्रदीप का कार्य है, उसी प्रकार सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान एक साथ होने पर भी सम्यग्ज्ञान कार्य है और दर्शन उसका कारण हैं। सम्यग्दर्शन के बिना सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र नियम से नहीं होते हैं।५० सम्यग्दर्शन और सम्यक् चारित्र इनका पूर्वापर संबंध : ।
___ दर्शन और चारित्र इनके संबंध की पूर्वापरता के विषय में जैन दार्शनिकों में कुछ भी विवाद नहीं है। उन्होंने सम्यग्दर्शन को ही प्रथम स्थान दिया है। उसके बाद ज्ञान को और ज्ञान के बाद चारित्र को स्थान दिया है। जैन आगमों में कहा है कि सम्यग्दर्शन के अभाव में सम्यक्-चारित्र हो हो नहीं सकता। दर्शनपाहुड में सम्यग्दर्शन ही प्रथम है, यह कहा है। सम्यग्दर्शन के द्वारा ही तप, ज्ञान और सदाचरण सफल होता है ऐसा 'आचारांग नियुक्ति' में भी स्पष्ट रूप से कहा गया
___ जैन आगमों में चारित्र के पूर्व ज्ञान को ही स्थान दिया गया है, क्योंकि चारित्र ज्ञानपूर्वक ही होता है। सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन को अच्छी तरह अंगीकार करना चाहिए, क्योंकि उसकेकारण से ही ज्ञान और चारित्र सम्यक् होता है। "सम्यक्त्वचारित्रे" इस सूत्र में सम्यक्त्व पद को आरंभ में रखा है क्योंकि चारित्र सम्यक्त्वपूर्वक होता है।५२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org