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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
लोक-व्यवहार की दृष्टि से की गई है। (सिद्धों के पंद्रह भेद मुक्त होने की पूर्वस्थिति के सूचक है। पूर्वावस्था को ध्यान में रखकर ही ये भेद बताए गए हैं।) वस्तुतः मुक्त जीवों में छोटा-बड़ा आदि किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं है।
मुक्त जीव आध्यात्मिक समता और समानता के साम्राज्य में रम जाते हैं। मोक्ष या मुक्ति यह कोई स्थान विशेष नहीं है। आत्मा के शुद्ध, चिन्मय स्वरूप की प्राप्ति ही मोक्ष (मुक्ति) है। कर्म से मुक्त होने पर अर्थात् आत्मा के सारे बंधन नष्ट हो जाने पर मुक्त आत्मा लोकाग्र भाग पर स्थित होता है। इस लोकाग्र को व्यवहार भाषा में सिद्धशिला (सिद्ध के रहने का स्थान) कहते हैं।
जीव एक द्रव्य है और यह द्रव्य 'लोक' के ऊर्ध्व, मध्य और अधोभाग में जन्म मरण करता रहता है। जीव का स्वभाव ऊर्ध्वगामी होने से मुक्त अवस्था में लोकाग्र पर स्वयं पहुँच जाता है। दीपक की ज्योति की प्रवृत्ति ऊपर की ओर यानी ऊर्ध्वगामी है। कर्म के कारण उसमें जड़ता आती है। परन्तु कर्ममुक्त होते ही स्वाभाविक रूप से आत्मा की ऊर्ध्वगति होती है।
तदनन्तरमूर्ध्व गच्छत्या लोकान्तात् । तत्त्वार्थसूत्र १०/५
जब तक कर्म पूर्णतः नष्ट नहीं होते तब तक आत्मा का स्वभाव शुद्ध नहीं होता। जिस प्रकार बादल दूर होते ही सूर्य पुनः अपने प्रकाश से चमकने लगता है, उसी प्रकार आत्मा से कर्म दूर होते ही आत्मा अपने शुद्ध स्वभाव से पुनः चमकने लगता है। परन्तु यहाँ इतना ध्यान में रखना चाहिए कि सूर्य पर फिर कभी बादल आ सकते हैं, परन्तु आत्मा एक बार कर्म मुक्त होने पर वह फिर कभी कर्म से युक्त नहीं हो सकता। मुक्ति, निर्वाण, अपवर्ग, सिद्धि आदि मोक्ष के ही विविध नाम हैं। मोक्ष-प्राप्ति के उपाय
आगम में मोक्ष प्राप्ति के चार उपाय हैं - (१) ज्ञान (२) दर्शन (३) चारित्र और (४) तप । ज्ञान से तत्त्व का आकलन होता है, दर्शन से तत्त्व पर श्रद्धा होती है। चारित्र से आने वाले कर्म को रोका जाता है और तप के द्वारा बंधे हुए कमों का क्षय होता है। इन चार उपायों से कोई भी जीव मोक्षप्राप्ति कर सकता है। इस साधना के लिए जाति, कुल, वेष आदि कोई भी बाधक नहीं है। वस्तुतः जिसने कर्म रूपी बंधन को तोड़कर आत्मगुण को प्रकट किया है, वही मोक्ष-प्राप्ति का सच्चा अधिकारी है। मोक्ष के लक्षण
जब आत्मा कर्ममल (अष्टकर्म) एवं तज्जन्य विकारों (राग, द्वेष, मोह) और शरीर को नष्ट कर देता है, तब उसके स्वाभाविक ज्ञानादि गुण प्रकट हो
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