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________________ जैन-दर्शन के नव तत्त्व में गहराई से अनुशीलन-परिशीलन किया गया है। "तत्' शब्द से "तत्त्व" शब्द बना है। संस्कृत भाषा में “तत्" शब्द सर्वनाम है। सर्वनाम शब्द सामान्य अर्थ के वाचक होते हैं। “तत्' शब्द से भाव अर्थ में 'त्व' प्रत्यय लगाकर "तत्त्व” शब्द बनता है। इसका अर्थ है- “उसका भाव"। 'तस्य भावः तत्त्वम्' अर्थात् वस्तु के स्वरूप को तत्त्व कहा जाता है। वेद, उपनिषद् और दर्शन साहित्य में “तत्त्व" की कल्पना गंभीर चिन्तन का विषय है। चिन्तन-मनन की शुरूआत तत्त्व से ही होती है। किं तत्त्वम् ? तत्त्व क्या है ? यही जिज्ञासा तत्त्वदर्शन का मूल है। लौकिक दृष्टि से “तत्त्व" शब्द के अर्थ निम्नलिखित होते हैं - वास्तविक स्थिति, यथार्थता, सारवस्तु और सारांश। दार्शनिक चिन्तकों ने प्रस्तुत अथों को स्वीकार करते हुए भी परमार्थ, द्रव्यस्वभाव, पर-अपर, ध्येय, शुद्ध, परम् इन अर्थों में भी 'तत्त्व' शब्द का उपयोग किया है।' सांख्यमत के अनुसार संसार के मूल कारण के रूप में 'तत्त्व' शब्द का प्रयोग हुआ है। समस्त दर्शनों ने अपनी-अपनी दृष्टि से तत्त्वों का निरूपण किया है। सब का कथन यही है कि जीवन में तत्त्वों का स्थान महत्त्वपूर्ण है। जीवन और तत्त्व परस्पर संबंधित हैं। तत्त्वों से जीवों को अलग नहीं किया जा सकता और तत्त्वों के अभाव में जीवन गतिशील नहीं हो सकता। जीवन से तत्त्वों को अलग करना आत्मा के अस्तित्त्व को नकारना है। तत्त्वों की मान्यता संपूर्ण भारतीय दर्शन तत्त्वों के आधार पर ही अवस्थित हैं। आस्तिक दर्शनों में हर एक दर्शन ने अपनी-अपनी परंपराओं को तत्त्वमीमांसा और तत्त्व विचार का आधार दिया है। भौतिकवादी चार्वाक-दर्शन ने भी तत्त्वों को स्वीकार किया है। वह पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि इन चार तत्त्वों को मानता है। वैशेषिक-दर्शन सात पदार्थ मानता है- द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय और अभाव। न्यायदर्शन ने सोलह पदार्थ माने हैं१- प्रमाण, २- प्रमेय, ३- संशय, ४- प्रयोजन, ५- दृष्टान्त, ६- सिद्धान्त, ७- अवयव, ८- तर्क, €- निर्णय, १०- वाद, ११- जल्प, १२- वितण्डा, १३- हेत्वाभास, १४- छल, १५- जाति, १६- निग्रहस्थान। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001676
Book TitleJain Darshan ke Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmashilashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size11 MB
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