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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
आस्रव के बीस मध्यम भेद ये हैं - (१) मिथ्यात्व आम्नव : विपरीत श्रद्धा को मिथ्यात्व कहते हैं (कुगुरु, कुदेव तथा कुधर्म पर श्रद्धा रखना और पच्चीस प्रकार के मिथ्यात्वों का सेवन करना)। (२) अव्रत आस्रव : त्याग न करना (पाँच इन्द्रियों और मन को काबू में न रखना, षट्काय जीवों की हिंसा से दूर न रहना- यह बारह प्रकार की अविरति है)। (३) प्रमाद आनव : धर्म के बारे में उदासीन रहना (मदविषय, कषाय, निद्रा तथा विकथा करना)। कुशलकार्य अर्थात् पुण्यकार्य में उदासीन भाव प्रमाद है। (४) कषाय आम्नव : जीव के क्रोध आदि विकार को कषाय आम्रव कहते हैं। (५) योग आसवः मन, वचन और काया की अशुभ प्रवृत्ति को योग आस्रव कहते
(६) प्राणातिपात आसव : जीवों की हिंसा करना। (७) मृषावाद आस्रव : झूठ बोलना। (८) अदत्तादान आसव : चोरी करना। (E) मैथुन आस्रव : अब्रह्मचर्य का सेवन करना। (१०) परिग्रह आस्रव : परिग्रह रखना। (११) श्रोत्रेन्द्रिय आनव : कानों को शब्द सुनने के लिए प्रवृत्त करना। (१२) चक्षुरिन्द्रिय आस्रव : आँखों को रूप देखने के लिए प्रवृत्त करना। (१३) घ्राणेन्द्रिय आसव : नाक को गंध लेने के लिए प्रवृत्त करना। (१४) रसनेन्द्रिय आम्नव : जिला को रस ग्रहण के लिए प्रवृत्त करना। (१५) स्पर्शेन्द्रिय आस्रव : शरीर को स्पर्श करने के लिए प्रवृत्त करना। (१६) मन आसव : मन से अनेक प्रकार की दुष्प्रवृत्ति करना। (१७) वचन आम्नव : वचन से अनेक प्रकार की दुष्प्रवृत्ति करना। (१८) काय आम्नव : काया से अनेक प्रकार की दुष्प्रवृत्ति करना। (१६) भाण्डोपकरण आस्रव : किसी वस्तु को असावधानी से लेना या रखना। (२०) सूचिकुशाग्र आस्रव : सुई आदि साधन असावधानी से लेना या रखना।
आस्रव के बयालीस भेद उमास्वातिजी के मतानुसार आस्रव के बयालीस भेद हैं। ये साम्परायिक आम्नव के भेद हैं, जो निम्नलिखित हैं :
पाँच इन्द्रियाँ चार कषाय पाँच अव्रत तीन योग
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