SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आंध्रप्रदेश तथा कर्नाटक आदि की पद यात्रायें कीं, जो धर्म-प्रभावना की दृष्टि से वास्तव में ऐतिहासिक महत्त्व लिये हुए हैं । पिछले तीन वर्षों से तमिलनाडु के अन्तर्गत चेन्नई महानगर के विभिन्न क्षेत्रों में विचरण एवं प्रवास करते हुए आप जन-जन में व्यापक रूप में धर्म-प्रसार का महान कार्य किया है । ज्ञानाराधना के साथ आपका जीवन निरन्तर संपृक्त रहा है । पी-एच० डी० के अनंतर आज तक वह क्रम सतत गतिशील है । आपने अपने विद्याराधना के इस महान कार्य को मूर्त रूप देने हेतु अपने चेन्नई प्रवास के अन्तर्गत “ णमो सिद्धाणं - पद समीक्षात्मक परिशीलन" विषय पर डी० लिट0 के लिये विशाल शोध ग्रंथ तैयार किया है । यह प्रसन्नता का विषय है कि इन पंक्तियों के लेखक को इस महान् कार्य में मार्गदर्शन एवं सहयोग देने का सुअवसर प्राप्त हुआ । यह शोध ग्रंथ महासतीजी की बाईस बर्ष की श्रुताराधना का सुपरिणाम है । महासतीजी निरामय एवं शतायुर्मय जीवन प्राप्त करें, तथा अपने विद्या एवं साधनानिष्ठ व्यक्तित्व द्वारा आत्मकल्याण एवं जन-जागरण के प्रशस्त पथ पर उत्तरोत्तर गतिशील रहें, यही मंगल कामना है । प्रोफेसर डॉo छगनलाल शास्त्री एम०ए० (त्रय), पी-एच० डी० काव्यतीर्थ, विद्यामहोदधि डॉ० साध्वी धर्मशीलाजी म० अपनी शिष्याओं की दृष्टि में भारत देश नर-रत्नों की खान हैं । इस देश में अनेक तीर्थंकर केवली भगवंत और शासन के अनेक तेजस्वी रत्न हुए। ऐसे शासन- रत्नों से आज भी यह देश चमक रहा है । ऐसे तेजस्वी रत्नों में से एक रत्न हैं— पूज्य डॉ० श्री धर्मशीलाजी महासतीजी । आपश्रीजी ने जैन शासन का झंडा देश-विदेश में फहराया और ज्ञान की तेजस्वी ज्योति प्रज्वलित कर सुषुप्त आत्माओं को जागृत किया और अध्यात्म मार्ग पर बढ़ाया है । आपश्रीजी जीवन जीने की कला संसार को सिखा रही हैं । संत पुरुषों को जन्म देनेवाले माता-पिता भी अमर बनते हैं । तारों के समूहरूप हजारों बालकों को जन्म देनेवाली माताएँ अनेक होती हैं, परन्तु सूर्य के समान महान तेजस्वी यशस्वी शासन - रत्न को जन्म देनेवाली माता कोई एक ही होती है और वह आदर्श माता ही जैन शासन में धर्म- धुरंधर बननेवाली आत्मा को जन्म दे सकती है तथा स्वयं की संतान को धैर्य का पाठ पढ़ाकर, सद्गुणों से सुशोभित कर, अपनी लाडली पुत्री की भेंट जैन- शासन को अर्पित कर सकती हैं । शासनप्रेमी, दृढ़धर्मी, सेवाभावी, पिताश्री रामचंदजी शिंगवी तथा प्रेममूर्ति, सरल स्वभावी माता श्री कस्तूरबाई शिंगवी जिन्होंने जैन शासन को उज्ज्वल करने वाली, श्रमणसंघ की शान बढ़ानेवाली, प्रतिभाशाली, प्रखर व्याख्याता महान विदुषी बा० ब्र० पूज्य डॉ० धर्मशीलाजी महसतीजी को जन्म दिया । Jain Education International ( १० ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001676
Book TitleJain Darshan ke Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmashilashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy