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________________ १०६ जैन-दर्शन के नव तत्त्व ६४. मुनिश्री नगराजजी - जैनदर्शन और आधुनिक विज्ञान - पृ० ४७ ६५. मुनिश्री नगराजजी - जैनदर्शन और आधुनिक विज्ञान - पृ० ४६-४७ ६६. मुनिश्री नगराजजी - जैनदर्शन और आधुनिक विज्ञान - पृ० ४६-४७ १७. सं० पुप्फभिक्खू-सुत्तागमे (अनुयोगद्वार-प्रमाणद्वार)-भाग-२,पृ० ११२४-११२५ परमाणू दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - सुहुमे य ववहारिय य । ६८. सं० पुप्फभिक्खू - सुत्तागमे (अनुयोगद्वार-प्रमाणद्वार) - भाग २, पृ० ११२५ अणंताणताणं सुहुमपोग्गलाणं समुदयसमिइसमागमेणं ववहारिए परमाणुयोग्गले निफज्जइ । ६६. सं० पुप्फभिक्खू - सुत्तागमे भाग १ (भगवई) - स० २५, उ० ३, पृ० ८५८ भाग १ (भगवई) १००. सं० पुष्फभिक्खू-सुत्तागमे (ठाणे)-भाग १, अ०४, उ०१, पृ०२२७ चउविहे पोग्गलपरिणामे, वण्णपरिणामे गंधपरिणामे रसपरिणामे फासपरिणामे ।। ३२८ ।। १०१. सं० देविदास दत्तात्रेय वाडेकर-मराठी तत्त्वज्ञान-महाकोश-प्रथम खण्ड,पु०२-३ संदर्भग्रंथ · थिली, एस : ए हिस्ट्री ऑफ फिलॉसफी (न्यूयॉर्क, १९१४; सुधा० आ० ३, संपादक - एल्० वुड, १९५१); दासगुप्त, एस०; ए हिस्ट्री ऑफ इंडियन फिलॉसफी, खं० १ (केंब्रिज. १९२२) श्री ह० दीक्षित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001676
Book TitleJain Darshan ke Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmashilashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size11 MB
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