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________________ जैन-दर्शन के नव तत्त्व तीन अरब लोग यदि अन्न-पानी ग्रहण किये बिना तथा विश्राम किये बिना प्रति मिनट तीन सौ बिन्दु गिनने की गति रखें तो भी छोटी सी बूंद के परमाणुओं की संपूर्ण संख्या गिनने में पूरे चार महीने लगेंगे। बाल निकालते समय उसके मूल में खून की जो सूक्ष्म बूंद होती है उसे अणुवीक्षण शक्ति से इतना स्पष्ट दिखाया जाय कि उसका व्यास सात फुट दिखाई दे तो भी परमाणु का व्यास १/ १००० इंच ही हो सकेगा। आधुनिक विज्ञान में परमाणु विज्ञान के क्षेत्र में परमाणुवाद सूनान की देन है, यह निर्विवाद है। डेमोक्रिटस दुनिया का पहला मनुष्य है जिसने यह प्रतिपादित किया कि समस्त संगठन शून्य आकाश और अदृश्य अनन्त तथा अविभाज्य परमाणुओं का एक घट है। दृश्य और अदृश्य समस्त संगठन परमाणुओं के संयोग और वियोग का परिणाम है। डेमोक्रिटस यूनान का एक सुप्रसिद्ध दार्शनिक था। उसका जन्म ३८० ई० पूर्व में हुआ और वह ४६० ई० पूर्व तक जीवित था। परमाणुओं के संबंध में उसके विचार इस प्रकार हैं - (१) विश्व में पदार्थ एकाकार व्यापक न होकर विभक्त है। (२) समस्त पदार्थकण ठोस परमाणुओं से बने हुए हैं। वे परमाणु विस्तृत आकाशान्तर पर अलग-अलग हैं। प्रत्येक परमाणु एक घटक हैं। परमाणु अछेद्य अभेद्य और अविनाशी है। (३) परमाणु पूर्ण है। वे ठीक वैसे ही नये और ताजे हैं जैसे पृथ्वी के प्रारंभ में थे। (४) परमाणु - परमाणु में आकार, लंबाई, चौड़ाई और वजन आदि बातों में विविधता दिखाई देती है। (५) परमाणुओं के प्रकार संख्यात हैं। परंतु प्रत्येक प्रकार के परमाणु अनंत हैं। (६) पदार्थों के गुण परमाणुओं के स्वभाव तथा संविधान (यानी कौन सा परमाणु किस प्रकार संयुक्त अथवा एकत्रित हुआ) पर निर्भर करते हैं। (७) परमाणु निरंतर गतिशील होते हैं। डेमोक्रिटस से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी तक परमाणु के संबंध में विविध अविष्कार होते रहे और नए-नए सिद्धांत आते रहे। परंतु आज तक परमाणु शास्त्रज्ञों की दृष्टि में अछेद्य अभेद्य और सूक्ष्मतम ही है।६। जैन-साहित्य में परमाणु के स्वरूप और कार्य का जो सूक्ष्मतम विवेचन किया गया है वह आज के शोधकर्ता विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है । परमाणुओं का पूर्व में जो लक्षण बताया गया है कि वे अछेद्य, अभेद्य और अग्राह्य है, उसके सम्बन्ध में आज के विज्ञान के विद्यार्थियों को सन्देह है, क्योंकि विज्ञान के सूक्ष्मदर्शक यंत्रों में परमाणु की अविभाज्यता दिखाई नहीं देती । परमाणु अगर अविभाज्य न हो तो उसे हम परमाणु नहीं कह सकते । जैन-आगम अनुयोगद्वार में परमाणु के दो भेद बताए गए हैं - (१) सूक्ष्म परमाणु और (२) व्यावहारिक परमाणु । सूक्ष्म परमाणु का स्वरूप पूर्व में बताया गया है । परंतु व्यावहारिक परमाणु अनंत सूक्ष्म परमाणुओं के समुच्चय से तैयार होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001676
Book TitleJain Darshan ke Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmashilashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size11 MB
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