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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारवर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन के तीर पर खड़ा व्यक्ति किसी मध्य नदी में थके हुए तैराक का उत्साहवर्धन कर उसे पार लगने का कारण बन जाता है, यद्यपि न तो स्वयं तैरना जानता है और न पार ही होता है। ___ सम्यक्त्व का त्रिविध वर्गीकरण एक अन्य प्रकार से भी किया गया है, जिसका आधार कर्म-प्रकृतियों का क्षयोपशम है । जैन विचारणा में अनन्तानुबंधी (तीव्रतम) क्रोध, मान, माया (कपट), लोभ तथा मिथ्यात्व मोह, मिश्र-मोह और सम्यक्त्व-मोह सात कर्मप्रकृतियाँ सम्यक्त्व (यथार्थ बोध) की विरोधी हैं। इसमें सम्यक्त्व मोहनीय को छोड़ शेष छह कर्म प्रकृतियाँ उदय में होती हैं तो सम्यक्त्व का प्रगटन नहीं हो पाता। सम्यक्त्व मोह मात्र सम्यक्त्व की निर्मलता और विशुद्धि में बाधक है। कर्म-प्रकृतियों की तीन स्थितियाँ हैं :-१. क्षय २. उपशम और ३. क्षयोपशम । इसी आधार पर सम्यक्त्व का यह वर्गीकरण किया गया है :-१. औपशमिक सम्यक्त्व २. क्षायिक सम्यक्त्व और ३. क्षायोपशमिक सम्यक्त्व ।
१. औपशमिक सम्यक्त्व-उपर्युक्त (क्रियमाण) कर्म-प्रकृतियों के उपशमित (दबाई हुई) होने पर जो सम्यक्त्व गुण प्रगट होता है वह औपशमिक सम्यक्त्व है। इसमें स्थायित्व का अभाव होता है । शास्त्रीय दृष्टि से यह अन्तर्मुहुर्त (४८ मिनट) से अधिक नहीं टिकता। उपशमित कर्म-प्रकृतियाँ (वासनाएँ) पुनः जागृत होकर इसे विनष्ट कर देती हैं।
२. क्षायिक सम्यक्त्व-उपर्युक्त सातों कर्म-प्रकृतियों के क्षय हो जाने पर जो सम्यक्त्व रूप यथार्थ बोध प्रकट होता है; वह क्षायिक सम्यक्त्व है । यह यथार्थ-बोध स्थायी होता है और एक बार प्रकट होने पर कभी नष्ट नहीं होता। शास्त्रीय भाषा में यह सादि एवं अनन्त होता हैं।
३. क्षायोपशमिक सम्यक्त्व-मिथ्यात्वजनक उदयगत (क्रियमाण) कर्म-प्रकृतियों के क्षय हो जाने पर और अनुदित (सत्तावान या संचित) कर्म-प्रकृतियों का उपशम हो जाने पर जो सम्यक्त्व प्रकट होता है वह क्षायोपशमिक सम्यक्त्व है। यद्यपि सामान्य दृष्टि से यह अस्थायी ही है, फिर भी एक लम्बी समयावधि (छाछठसागरोपम से कुछ अधिक) तक अवस्थित रह सकता है । __ औपशमिक और क्षायोपशमिक सम्यक्त्व की भूमिका में सम्यक्त्व के रस का पान करने के पश्चात् जब साधक पुनः मिथ्यात्व की ओर लौटता है तो लौटने की इस क्षणिक अवधि में वान्त सम्यक्त्व का किंचित् संस्कार अवशिष्ट रहता है। जैसे वमन करते समय पमित पदार्थों का कुछ स्वाद आता है वैसे ही सम्यक्त्व को वान्त करते समय सम्यक्त्व का भी कुछ आस्वाद रहता है। जीव की ऐसी स्थिति सास्वादन सम्यक्त्व कहलाती है ।
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