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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारवर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
समान समझने वाला और मननशील है, अर्थात् ईश्वर के स्वरूप का निरन्तर मनन करनेवाला है एवं जिस किस प्रकार से भी मात्र शरीर का निर्वाह होने में सदा ही सन्तुष्ट है और रहने के स्थान में ममता से रहित है, वह स्थिर-बुद्धिवाला, भक्तिमान पुरुष मुझे प्रिय है। इस प्रकार जानकर, जो पुरुष नष्ट होते हुए सब चराचर भूतों में नाशरहित परमेश्वर को, समभाव से स्थित देखता है, वह वही देखता है। क्योंकि वह पुरुष सबमें समभाव से स्थित हुए परमेश्वर को देखता हुआ अपने द्वारा आपको नष्ट नहीं करता है, अर्थात् शरीर का नाश होने से अपनी आत्मा का नाश नहीं मानता है, इससे वह परमगति को प्राप्त होता है। ___ समत्व के अभाव में ज्ञान यथार्थ ज्ञान नहीं है चाहे वह ज्ञान कितना ही विशाल क्यों न हो। वह ज्ञान योग नहीं है। समत्व-दर्शन यथार्थ ज्ञान का अनिवार्य अंग है । समदर्शी ही सच्चा पण्डित या ज्ञानी है। ज्ञान की सार्थकता और ज्ञान का अन्तिम लक्ष्य समत्व-दर्शन है ।" समत्वमय ब्रह्म या ईश्वर जो हम सब में निहित है, उसका बोध कराना ही ज्ञान और दर्शन की सार्थकता है। इसी प्रकार समत्व भावना के उदय से भक्ति का सच्चा स्वरूप प्रगट होता है। जो समदर्शी होता है वह परम भक्ति को प्राप्त करता है । गीता के अठारहवें अध्याय में कृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि जो समत्वभाव में स्थित होता है वह मेरी परमभक्ति को प्राप्त करता है। बारहवें अध्याय में सच्चे भक्त का लक्षण भी समत्व वृत्ति का उदय माना गया है । जब समत्वभाव का उदय होता है तभी व्यक्ति का कर्म अकर्म बनता है। समत्व-वृत्ति से युक्त होकर किया गया कोई भी आचरण बन्धनकारी नहीं होता, उस आचरण से व्यक्ति पापको प्राप्त नहीं होता । इस प्रकार ध्यान-योग का परम साध्य भी वैचारिक समत्व है। समाधि की एक परिभाषा यह भी हो सकती है कि जिसके द्वारा चित्त का समत्व प्राप्त किया जाता है, वह समाधि है।
ज्ञान, कर्म, भक्ति और ध्यान सभी समत्व को प्राप्त करने के लिए हैं। जब वे समत्व से युक्त हो जाते हैं, तब अपने सच्चे स्वरूपको प्रकट करते हैं । ज्ञान यथार्थ ज्ञान बन जाता है, भक्ति परम भक्ति हो जाती है, कर्म अकर्म हो जाता है और ध्यान निर्विकल्प समाधि का लाभ कर लेता है । ५. समत्वयोग का व्यवहार पक्ष
समत्वयोग का तात्पर्य चेतना का संघर्ष या द्वन्द्व से ऊपर उठ जाना है। वह
१. गीता १२।१९ ४. वही, ५:१८ ७. वही, १२।१७-१९
२. वही, १३।२७ ५. वही, १३।२७-२८ ८. वही, २।३८
३. वही, १३।२८ ६. वही, १८१५४ ९. वही, २०५३
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