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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
६. स्वप्न जाग्रत-यह स्वप्निल चेतना है । स्वप्न देखती हुई जो चेतना है वह स्वप्न जाग्रत है । यह स्वप्न दशा का बोध है ।
७. सुषुप्ति-यह स्वप्न रहित निद्रा की अवस्था है। जहाँ आत्मचेतनता की सत्ता होते हुए भी जड़ता की स्थिति है।
ज्ञान की सात भूमिकाएँ निम्न हैं१. शुभेच्छा-यह कल्याण कामना है। २. विचारणा-यह सदाचार में प्रवृत्ति का निर्णय है। ३. तनुमानसा--यह इच्छाओं और वासनाओं के क्षीण होने की अवस्था है । ४. सत्त्वापत्ति-शुद्धात्म स्वरूप में अवस्थिति है ।
५. असंसक्ति-यह आसक्ति के विनाश की अवस्था है। यह राग-भाव का नाश होने से सन्तोषरूपी निरतिशय आनन्द की अनुभूति की अवस्था है।
६. पदार्थाभावनी-यह भोगेच्छा के पूर्णतः विनाश की अवस्था है, इसमें कोई भो चाह या अपेक्षा नहीं रहती है, केवल देह यात्रा दूसरों के प्रयत्न को लेकर चलती है ।
७. तूर्यगा-यह देहातीत विशुद्ध आत्मरमण की अवस्था है। इसे मुक्तावस्था भी कहा जा सकता है। योग दर्शन में आध्यात्मिक विकास क्रम
योग साधना का अन्तिम लक्ष्य चित्तवृत्ति निरोध है। योगदर्शन में योग की परिभाषा है-'योगः चित्तवृत्तिनिरोधः'। योगदर्शन में चित्तवृत्ति निरोध को इसलिए साध्य माना गया कि सारे दुःखों का मूल चित्त-विकल्प है। चित्त-विकल्प राग या आसक्तिजनित है। जब राग या आसक्ति होगी तो चित्त-विकल्प होंगे और जब चित्त-विकल्प होंगे तो मानसिक तनाव होगा और जब मानसिक तनाव होंगे तो समाधि सम्भव नहीं होगी। समाधि के लिए चित्त का निर्विकल्प या निरुद्ध होना आवश्यक है । योगदर्शन में चित्त की जो पाँच अवस्थाएं बतायी गयी है, वे क्रमशः साधना के विकास क्रम की ही सूचक है । चित्त की ये पाँच अवस्थाएँ निम्न है
१. मूढ़--यह चित्त की तमोगुण प्रधान जड़ता की अवस्था है। इसमें अज्ञान और आलस्य की प्रमुखता रहती है। आत्माभिरुचि कौर ज्ञानाभिरुचि का अभाव होता है । यह अवस्था जैनधर्म के मिथ्यात्व गुणस्थान और बौद्धधर्म के अंधपृथक्जन के समान है ।
२. क्षिप्त-यह चित्त की रजोगुण प्रधान अवस्था है। इसमें रजोगुण की प्रमुखता के कारण चित्त में चंचलता बनी रहती है। सांसारिक विषय-वासनाओं में अभिरुचि होने के कारण मन केन्द्रित नहीं रहता। इस अवस्था में व्यक्ति अनेक चित्त होता है । वह वासनाओं का दास होता है और अपनी तीव्र आकांक्षाओं के कारण दुःखी बना रहता है । यद्यपि उसमें सत्त्वगुण का संयोग होने से कभी-कभी तत्त्व जिज्ञासा और संसार की
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