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आध्यात्मिक एवं नैतिक विकास
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१. स्थायी प्रबलतम (अनन्तानुबंधी) क्रोध, मान, माया और लोभ ४ २. अस्थायी किन्तु अनियंत्रणीय (अप्रत्याख्यानी) क्रोध, मान, माया और लोभ ४ ३. नियंत्रणीय (प्रत्याख्यानी) क्रोध, मान, माया और लोभ ४. मिथ्यात्वमोह, मिश्र मोह और सम्यक्त्व मोह
इस अवस्था में आत्मकल्याण के साथ लोक-कल्याण की भावना और तदनुकूल प्रवृत्ति भी होती है। यहाँ आत्मा पुद्गलासक्ति या कर्तृत्व भाव का त्याग कर विशुद्ध ज्ञाता एवं दृष्टा के स्वस्वरूप में अवस्थिति का प्रयास तो करती है, लेकिन देह-भाव या प्रमाद अवरोध उपस्थित करता रहता है, अतः इस अवस्था में पूर्ण आत्म-जागृति सम्भव नहीं होती है, इसलिए साधक को प्रमाद के कारणों का उन्मूलीकरण या उपशमन करना होता है और जब वह उसमें सफल हो जाता है तो विकास की अग्निम श्रेणी में प्रविष्ट हो जाता है। ७. अप्रमत्त-संयत गणस्थान
आत्म-साधना में सजग, वे साधक इस वर्ग में आते हैं, जो देह में रहते हुए भी देहातीतभाव से युक्त हो आत्मस्वरूप में रमण करते हैं और प्रमाद पर नियन्त्रण कर लेते हैं। यह पूर्ण सजगता की स्थिति है। साधक का ध्यान अपने लक्ष्य पर केन्द्रित रहता है, लेकिन यहाँ पर दैहिक उपाधियाँ साधक का ध्यान विचलित करने का प्रयास करती रहती हैं। कोई भी सामान्य साधक ४८ मिनिट से अधिक देहातीत भाव नहीं रह पाता। दैहिक उपाधियाँ उसे विचलित कर देती है, अतः इस गुणस्थान में साधक का निवास अल्पकालिक ही होता है। इस श्रेणी में कोई भी साधक एक अन्तर्मुहूर्त (४८ मिनिट) से अधिक नहीं रह पाता है । इसके पश्चात् भी यदि वह देहातीतभाव में रहता है तो विकास की अग्रिम श्रेणियों की ओर प्रस्थान कर जाता है या देहभाव की जागृति होने पर लौटकर पुनः नीचे के छठे दर्जे में चला जाता है । अप्रमत्त-संयत गुणस्थान में साधक समस्त प्रमाद के अवसरों (जिनकी संख्या ३७५०० मानी गयी है ) से बचता है।
सातवें गुणस्थान में आत्मा अनैतिक आचरण की सम्भावनाओं को समूल नष्ट करने के लिए शक्ति-संचय करती है। यह गुणस्थान नैतिकता और अनैतिकता के मध्य होने वाले संघर्ष की पूर्व तैयारी का स्थान है। साधक अनैतिक जीवन के कारणों की शत्रुसेना के सम्मुख युद्धभूमि में पूरी सावधानी एवं जागरुकता के साथ डट जाता है । अग्रिम गुणस्थान उसी संघर्ष की अवस्था के द्योतक है। आठवाँ गुणस्थान संघर्ष के उस रूप
१. २५ विकथाएँ, २५ कषाय और नोकषाय, ६ मन सहित पाँचों इन्द्रियाँ, ५ निद्राएँ,
२ राग और द्वेष, इन सबके गुणनफल से यह ३७५०० की संख्या बनती है ।
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