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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
भिन्न है । अंगुत्तरनिकाय में सम्यक् दृष्टि, सम्यक् - संकल्प, सम्यक् वाचा, सम्यक् कर्मान्त, सम्यक् - आजीव, सम्यक् - व्यायाम, सम्यक् स्मृति, सम्यक् समाधि, सम्यक्-ध्यान और सम्यक् विमुक्ति ये दस धर्म बताये गये हैं ।" वस्ततुः इसमें अष्टांग आर्य मार्ग में सम्यक्ध्यान और सम्यक् विमुक्ति ये दो चरण जोड़कर दस की संख्या पूरी की गई है । यद्यपि अशोक के शिलालेखों में जिन नौ धर्मों या सद्गुणों की चर्चा की गई है, वे जैन परम्परा और हिन्दू परम्परा के काफी निकट आते हैं । वे गुण निम्न हैं- दया, उदारता, सत्य, शुद्धि ( शौच ), भद्रता, शान्ति, प्रसन्नता, साधुता और आत्मसंयम । २
इस प्रकार हम देखते हैं कि क्रम और नामों के अवान्तर एवं परम्परागत मतभेदों के होते हुए भी सद्गुण सम्बन्धी मूलभूत दृष्टि में तीनों परम्परा में विशेष अन्तर नहीं है । यद्यपि यह एक अलग प्रश्न है कि जब इन सद्गुणों के पालन में अन्तर्विरोध हो तो किसे सद्गुण की प्रमुखता दी जाए। उदाहरणार्थ जब दया और न्याय या अहिंसा (दया) और सत्य का एक साथ पालन सम्भव न हो तो किस सद्गुण का पालन किया जाए और किसकी उपेक्षा की जाए । इस सम्बन्ध में तीनों परम्पराओं में और उनके विचारकों में मतभेद होना स्वाभाविक है । वस्तुतः यह एक प्रश्न है जिस पर ऐकान्तिक निर्णय सम्भव नहीं है । ऐसे निर्णय देश, काल, व्यक्ति, समाज और परिस्थिति पर निर्भर करते हैं अतः उनमें विविधता का होना स्वाभाविक हो है ।
धर्म के चार चरण
जैन - परम्परा में धर्म के चार अंग माने गये हैं जिनमें दान, शील, तप और भाव आते हैं । इनकी साधना गृहस्थ और श्रमण दोनों ही प्रकारान्तर से कर सकते हैं । वस्तुतः धर्म के ये चारों अंग धर्म के सामाजिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक पक्षों को अभिव्यक्त करते हैं । दान का सम्बन्ध सामाजिक जीवन से है और शील का सम्बन्ध नैतिक जीवन से । तप और भाव आध्यात्मिक पक्ष से सम्बन्धित हैं । बौद्ध परम्परा में भी दान पारमिता और शील पारमिता की साधना आवश्यक कही गयी है । बोधिसत्व सबसे पहले इन्हीं पारमिताओं की साधना करता है ।
दान
जैन आचार्यों के अनुसार दान का अर्थ है अनुग्रहपूर्वक अपनी वस्तु का परहित के लिए उत्सर्ग ( त्याग ) करना । वैसे भारतीय परम्परा में दान के लिए सम्-विभाग संविभाग शब्द का प्रयोग हुआ है । जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों ही परम्पराओं में दान को संविभाग कहा गया है । इसका अर्थ यह है कि दान देकर दाता किसी व्यक्ति
१. अंगुत्तरनिकाय, १० ।
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२. अशोक के शिलालेख स्तंभ, २ एवं ७ ।
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