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________________ जैन आचार के सामान्य नियम वैदिक परम्परा में दस धर्म (सद्गुण) वैदिक परम्परा में भी थोड़े-बहुत अन्तर से इन सद्गुणों का विवेचन पाया जाता है । हिन्दू धर्म में हमें दो प्रकार के धर्मों का विवेचन • उपलब्ध होता है - एक सामान्य धर्म और दूसरे विशेष धर्म । सामान्य धर्म वे हैं जिनका पालन सभी वर्ण एवं आश्रमों के लोगों को करना चाहिए, जबकि विशेष धर्म वे हैं जिनका पालन वर्ण विशेष या आश्रम विशेष के लोगों को करना होता है । सामान्य धर्म की चर्चा अति प्राचीन काल से होती आयी है । मनु ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, शौच और इन्द्रिय निग्रह इन पांच को सभी वर्णाश्रम वालों का धर्म बताया है । प्रसंगान्तर से उन्होंने इन दस सामान्य धर्मों की भी चर्चा की है यथा-धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध । इस सूची में क्षमा, शौच, इन्द्रियनिग्रह और सत्य ही ऐसे हैं जो जैन परम्परा के नामों से पूरी तरह मेल खाते हैं, शेष नाम भिन्न हो हैं । महाभारत के शान्तिपर्व में अक्रोध, सत्यवचन, संविभाग, क्षमा, प्रजनन, शौच, भद्रोह, आर्जव एवं भृत्य - मरण इन नौ सद्गुणों का विवेचन है । वामनपुराण में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, दान, क्षान्ति, दम, शम, अकार्पण्य, शौच और तप इन दस सद्गुणों का विवेचन है । विष्णु धर्म सूत्र में १४ गुणों का वर्णन है, जिनमें अधिकांश यही हैं । महाभारत के आदिपर्व में धर्म की निम्न दस पत्नियों का उल्लेख है - कीर्ति, लक्ष्मी, धृति, मेधा, पुष्टि, श्रद्धा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा और मति । इसी प्रकार श्रीमद्भागवत में भी धर्म की श्रद्धा, मैत्री, दया, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति, बुद्धि, मेधा, तितिक्षा, हवी और मूर्ति इन तेरह पत्नियों का उल्लेख है । वस्तुतः इन्हें गुणों, धर्म की पत्नियां कहने का अर्थ इतना ही है कि इनके बिना धर्म अपूर्ण रहता है । इसी प्रकार श्रीमद्भागवत में धर्म के पुत्रों का भी उल्लेख है । धर्म के पुत्र हैं- शुभ, प्रसाद, अभय, सुख, मुह, स्मय, योग, दर्प, अर्थ, स्मरण, क्षेम और प्रश्रय | वस्तुतः सद्गुणों का एक परिवार है और जहां एक सद्गुण भी पूर्णता के साथ प्रकट होता हैं वहां उससे सम्बन्धित दूसरे सद्गुण भी प्रकट हो जाते हैं । ॐ बौद्ध धर्म और दस सद्गुण जैसा कि हमने देखा जैन धर्मसम्मत क्षमा आदि दस धर्मो ( सद्गुण ) की अलगअलग चर्चा उपलब्ध हो जाती है, किन्तु उसमें जिन दस धर्मों का उल्लेख हुआ है, इनसे १. मनुस्मृति, १०।६३ । ३. महाभारत, आदिपर्व, ६६।१५ । ५. वही, ४।१।५०-५३ । Jain Education International ४१९ २... वही, ६।९२ । ४. श्रीमद्भागवत, ४।४९ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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