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________________ धमण-धर्म ३९१ सकता। हम अपराधों के रोकने, या धन सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए करोड़ों रुपये व्यय करते हैं, पुलिस, चौकीदार और बड़े-बड़े न्यायाधीश रखते हैं, उन्हें सामाजिक श्रम का शोषक नहीं कहा जाता। लेकिन जो रोटी का टुकड़ा और कपड़ा लेकर समाज में सद्गुणों के विकास के लिए प्रयास करे, उपदेश दे, लोगों को अनैतिक आचरण से विमुख रखे और स्वयं के आचरण से आदर्श उपस्थित करे, उसे हम सामाजिक श्रम का शोषक कहें यह बात बुद्धिगम्य नहीं लगती । यह सबसे बड़ी मूर्खता है कि हम सदाचार के वृक्ष को लगाने वाले की अपेक्षा दुराचार की घास खोदने वाले को अधिक महत्त्व देते हैं, जिसका परिणाम स्थायी नहीं है । ___ सामाजिक विकास के लिए सभी सदस्यों का सहयोग अपेक्षित होता है। यही नहीं वरन् समाज के प्रत्येक सदस्य का कर्तव्य भी होता है कि वह सामाजिक विकास में अपना भाग अदा करे, किन्तु श्रमण वर्ग समाज के विकास में अपना योगदान नहीं देता है और सामाजिक विकास में बाधक है। इस आक्षेप का मूल कारण यह है कि हम केवल भौतिक विकास को ही विकास मान लेते हैं और नैतिक और आध्यात्मिक विकास को भूल जाते हैं । भौतिक विकास सामाजिक विकास का एक अंग हो सकता है लेकिन वह पूर्ण सामाजिक विकास नहीं है। दूसरे भौतिक विकास को नैतिक और सामाजिक विकास से अधिक मूल्यवान् भी नहीं माना जा सकता। ऐसी स्थिति में जैन साधु वर्ग, जो नैतिक और आध्यात्मिक विकास में सहयोग देता है, सामाजिक विकास का बाधक नहीं माना जा सकता। इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन आचार दर्शन में श्रमण संस्था वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन में नैतिकता की प्रहरी है। उसके मूल्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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