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जैन, वौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
महावीर ने इस नियम को संशोधित कर किसी भी श्रमण के लिए बने औद्देशिक आहार आदि पदार्थों का ग्रहण वर्जित माना।
(३) शय्यातर कल्प-श्रमण अथवा श्रमणी जिस व्यक्ति के आवास (मकान) में निवास करें उसके यहाँ से किसी भी पदार्थ का ग्रहण करना वर्जित है।
(४) राजपिंड कल्प-राजभवन से राजा के निमित्त बनाये गये किसी भी पदार्थ का ग्रहण नहीं करना वर्जित है।
(५) कृतिकर्म कल्प-दीक्षा वय में ज्येष्ठ श्रमणों के आने पर उनके सम्मान में खड़ा हो जाना तथा यथाक्रम ज्येष्ठ मुनियों को वन्दन करना कृतिकर्म कल्प है । यहाँ विशेष स्मरणीय यह है कि साध्वी के लिए अपने से कनिष्ठ श्रमणों को भी वन्दन करने का विधान है। एक दीक्षा-वृद्ध साध्वी के लिए भी नव दीक्षित श्रमण के वन्दन का विधान है । सम्भवतः इसके पीछे हमारे देश की पुरुषप्रधान सभ्यता का ही प्रभाव है ।।
(६) व्रत कल्प-सभी श्रमण एवं श्रमणियों को पंच महाव्रतों का अप्रमत्त भाव से मन, वचन और काया के द्वारा पालन करना चाहिए। यह उनका व्रत कल्प है । महावीर के पूर्व अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य दोनों एक ही व्रत के अन्तर्गत थे। पार्श्वनाथ तक चातुर्याम धर्म की व्यवस्था थी । महावीर ने पार्श्वनाथ के चातुर्याम के स्थान पर पंच महाव्रत का विधान किया ।'
(७) ज्येष्ठ कल्प-जैन आचारदर्शन में दीक्षा दो प्रकार की मानी गई है-१. छोटी दीक्षा और २. बड़ी दीक्षा। छोटी दीक्षा परीक्षारूप है। इसमें मुनिवेश धारण किया जाता है, लेकिन व्यक्ति को श्रमण-संघ में प्रवेश नहीं दिया जाता है। व्यक्ति को योग्य पाने पर ही श्रमण संघ में प्रवेश देकर बड़ी दीक्षा दी जाती है । प्रथम को सामायिक चारित्र
और दूसरे को छेदोपस्थापनाचारित्र कहा जाता है । छेदोपस्थापनाचारित्र के आधार पर ही मुनि को श्रमण-संस्था में ज्येष्ठ अथवा कनिष्ठ माना जाता है। महावीर के पूर्व इन दो दीक्षाओं का विधान नहीं था। दीक्षा ग्रहण करने के दिन से ही व्यक्ति को श्रमण संस्था में प्रवेश दे दिया जाता था । लेकिन महावीर ने इन दो दीक्षाओं का विधान किया और छेदोपस्थापना चारित्र के आधार पर ही श्रमण-संघ में व्यक्ति की ज्येष्ठता और कनिष्ठता निर्धारित की।
(८) प्रतिक्रमण कल्प-प्रतिदिन प्रातःकाल और सायंकाल प्रतिक्रमण करना प्रतिक्रमण कल्प है। महावीर के पूर्व तक पार्श्वनाथ की परम्परा में दोष लगने पर ही प्रायश्चित स्वरूप प्रतिक्रमण किया जाता था। महावीर ने दोनों समय प्रतिक्रमण करना अनिवार्य बना दिया।
१. देखिए-उत्तराध्ययन अध्ययन, २३, सूत्रकृतांग २।१६ ।
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