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श्रमण-धर्म
कारण है कि बुद्ध ने स्त्रियों को संघ में प्रवेश देने में अनुत्सुकता प्रकट की । अपने अंतिम उपदेश में भी बुद्ध ने भिक्षुओं को स्त्री-संपर्क से बचने के लिए सावधान किया है । बुद्ध
परिनिर्वाण के पूर्व आनन्द ने प्रश्न किया था कि भगवन्, हम किस प्रकार स्त्रियों के साथ बर्ताव करें ? भगवान् ने कहा कि उन्हें मत देखो । आनन्द ने फिर प्रश्न किया कि यदि वे दिखाई दें तो हम उनके साथ कैसे व्यवहार करें ? बुद्ध ने पुनः कहा कि हे आनन्द, आलाप ( बातचीत ) न करना चाहिए। आनन्द ने पुनः पूछा कि उनके साथ यदि बातचीत का प्रसंग उपस्थित हो जाये तो क्या करें ? बुद्ध ने अंत में यही कहा कि ऐसी स्थिति में भिक्षु को अपनी स्मृति को दर्शन में भिक्षु और भिक्षुणियों के पारस्परिक सम्बन्धों के गये हैं, उनमें भी इस बात की काफी सावधानी रखी गई है कि भिक्ष, और भिक्षुणियों का ब्रह्मचर्य स्खलित न होने पावे । विनयपिटक के अनुसार भिक्षु का एकान्त में भिक्षुणी के साथ बैठना अपराध माना गया है ।
सम्हाले
पर अहितकर हो
४. मृषावादविरमण – जैन - परम्परा की भांति बौद्ध परम्परा में भी भिक्षु के लिए असत्य भाषण वर्जित है । भिक्षु न स्वयं असत्य बोले, न अन्य से असत्य बोलवावे न किसी को असत्य बोलने की अनुमति दे । 3 बौद्ध परम्परा के अनुसार भिक्षु को सत्यवादी होना चाहिए। वह मिथ्याभाषण में न पड़े, न किसी की चुगली ही करे, न कपटपूर्ण वचन ही बोले । बुद्ध का कथन है कि जो वचन सत्य हो उसे वे नहीं बोलते हैं, परन्तु जो वचन सत्य हो, वह प्रिय या अप्रिय होते हुए भी हितदृष्टि से बोलना हो तो उसे बुद्ध बोलते हैं ।" दीघनिकाय के अनुसार भिक्षु को असत्य वचन नहीं बोलना चाहिए तथा हमेशा शुद्ध, उचित, अर्थपूर्ण, तर्कपूर्ण और मूल्यवान् वचन ही बोलना चाहिए । जानबूझकर असत्य बोलना अथवा अपमानजनक शब्दों का उपयोग करना भिक्षु के लिए प्रायश्चित योग्य दोष माना गया है । इतना ही नहीं, बौद्ध भिक्षु को गृहस्थ जीवन सम्बन्धी कार्यों में अनुमति हो ऐसी भाषा भी नहीं बोलना चाहिए | गृहस्थोचित भाषा बोलना भी भिक्षु के लिए वर्जित है । भिक्षु को सदैव ही कठोर वचन का परित्याग कर नम्र एवं मधुर वचन ही बोलना चाहिए । बुद्ध ने अनेक सन्दर्भों में भिक्षु कैसी भाषा बोले इसका निर्देश किया है, लेकिन विस्तारभय से यहां उसकी समग्र चर्चा में जाना संभव नहीं है ।
२.
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१. दीघनिकाय, २०३ ॥
३. सुत्तनिपात, २६।२२ ।
५. मज्झिमनिकायअभयराज सुत्त ।
६. विनयपिटक पातिमोक्ख पाचितियधम्म, १-२ |
रखना चाहिए । बौद्ध संदर्भ में जो नियम बनाये
विनयपिटक पातिमोक्ख पाचितियधम्म, ३० । वही, ५३।७, ९ ।
७. संयुत्तनिकाय, ४२।१ ।
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