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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
जैन- परम्परा के महाव्रतों और बौद्ध परम्परा के भिक्षु-शीलों में न केवल बाह्य शाब्दिक समानता है, वरन् दोनों की मूलभूत भावना भी समान है । बौद्ध विचारकों ने भी जैन - परम्परा के समान इनके सम्बन्ध में गहराई से विवेचन किया है । तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से यह उचित होगा कि हम थोड़ी गहराई से दोनों परम्पराओं की समरूपता को देखने का प्रयास करें ।
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भी भिक्षु के लिए हिंसा वर्जित है । लिए मन, वचन, काय और कृत,
१. प्राणातिपात विरमण - बौद्ध परम्परा में इतना ही नहीं, वरन् बौद्ध परम्परा में भिक्षु के कारित तथा अनुमोदित हिंसा का निषेध है ।' बौद्ध परम्परा भी जैन परम्परा के समान भिक्षु के लिए वनस्पति तक की हिंसा का निषेध करती है । विनयपिटक में वनस्पति का तोड़ना और भूमि का खोदना भी भिक्षु के लिए वर्जित है, क्योंकि इसमें प्राणियों की हिंसा की संभावना है । हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि बौद्ध परम्परा में भी वनस्पति, पृथ्वी आदि को सूक्ष्म प्राणियों से युक्त माना गया है । यद्यपि वह जैन परम्परा के समान पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु में जीवन को स्वीकार नहीं करती है, तथापि पृथ्वी और पानी में जीव रहते हैं यह उसे स्वीकार है । अतः बौद्ध भिक्षु के लिए सचित्त जल का पीना आदि वर्जित नहीं है । मात्र नियम यह है कि उसे जल छानकर पीना चाहिए ।
२. अदत्तादान विरमण – जैन और बौद्ध दोनों परम्पराएं यह स्वीकार करती हैं कि भिक्षु को कोई भी वस्तु उसके स्वामी से दिये बिना ग्रहण नहीं करना चाहिए । बौद्ध भिक्षु भी अपनी जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति भिक्षावृत्ति के द्वारा ही करता है । बौद्ध परम्परा ने न केवल उन बाह्य वस्तुओं के संदर्भ में ही अस्तेय व्रत को स्वीकार किया है जिनका कि कोई स्वामी हो, वरन् यह भी स्वीकार करती है कि न केवल नगर में वरन् जंगल में भी बिना दी हुई वस्तु नहीं लेनी चाहिए । विनयपिटक के अनुसार जो भिक्षु बिना दी हुई वस्तु ग्रहण करता है, वह अपने श्रमण जीवन से च्युत हो जाता है । संयुत्तनिकाय में कहा गया है कि यदि भिक्षु फूल को सूंघता है तो भी वह चोरी करता है । *
३. अब्रह्मचर्य - विरमण — दोनों परम्पराओं में श्रमण के लिए कामसेवन वर्जित है । बौद्ध परम्परा भी जैन- परम्परा के समान इस नियम के संदर्भ में काफी सजग प्रतीत होती है । विनयपिटक के अनुसार भिक्षु लिए स्त्री का स्पर्श भी वर्जित माना गया है ।" बुद्ध ने भी इस संदर्भ में काफी सतर्कता बरतने का प्रयास किया है यही
१. सुत्तनिपात, ३७ २७ ।
३. विनयपिटक पातिमोवख पराजिकधम्म, २ ।
५. विनयपिटक पातिमोक्ख संघादिसेसधम्म, २ ।
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२. विनयपिटक, महावग्ग ११७८|२ | ४. संयुक्त निकाय, ९ । १४ ।
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