SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 372
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बमण-धर्म ३३३ अहिंसा महाव्रत के सम्यक् पालन के लिए पाँच भावनाओं का विधान है-१. ईर्या समिति-चलते-फिरते अथवा बैठते उठते समय सावधानी रखना, २. वचन समितिहिंसक अथवा किसी के मन को दुखाने वाले वचन नहीं बोलना, ३. मन समितिमन में हिंसक विचारों को स्थान नहीं देना, ४. एषणा समिति-अदीन होकर ऐसा निर्दोष आहार प्राप्त करने का प्रयास करना जिसमें श्रमण के लिए कोई हिंसा न की गयी हो, ५. निक्षेपणा समिति साधु जीवन के पात्रादि उपकरणों को सावधानीपूर्वक प्रमार्जन करके उपयोग में लेना अथवा उन्हें रखना और उठाना ।' अहिंसा महाव्रत के अपवाद-सामान्यतया अहिंसा महाव्रत के सन्दर्भ में मूल आगमों में अधिक अपवादों का कथन नहीं है । मूल आगमों में अहिंसाव्रत सम्बन्धी जो अपवाद हैं उनमें त्रस जीवों की हिंसा के संदर्भ में कोई अपवाद नहीं है, केवल वनस्पति एवं जल आदि को परिस्थितिवश छूने अथवा आवागमन की स्थिति में उनकी होनेवाली हिंसा के अपवादों का उल्लेख है । यद्यपि निशीथचूणि आदि परवर्ती ग्रन्थों में मुनिसंध या साध्वी संघ के रक्षणार्थ सिंह आदि हिंसक प्राणियों एवं दुराचारी मनुष्यों की हिंसा करने सम्बन्धी अपवादों का भी उल्लेख है। वस्तुतः परवर्ती साहित्य में जिन अधिक अपवादों का उल्लेख है, उनके पीछे संघ (समुदाय) की रक्षा का प्रश्न जुड़ा हुआ है। इसी आधार पर धर्म प्रभावना के निमित्त होने वाली जल, वनस्पति एवं पृथ्वी सम्वन्धी हिंसा को भी स्वीकृति प्रदान कर दी गयी। __ सत्य-महाव्रत-असत्य का सम्पूर्ण त्याग श्रमण का दूसरा महावत है । श्रमण मन, वचन एवं काय तथा कृत-कारित-अनुमोदन की नव कोटियों सहित असत्य से विरत होने की प्रतिज्ञा करता है । श्रमण को मन, वचन और काय तीनों से सत्य पर आरूढ़ होना चाहिए । मन, वचन और काय में एकरूपता का अभाव ही मृषावाद है । इसके विपरीत मन, वचन और काय की एकरूपता ही सत्य महाव्रत का पालन है। सत्य महाव्रत के संदर्भ में वचन की सत्यता पर भी अधिक बल दिया गया है। साधारणरूप में सत्य महाव्रत से असत्य भाषण का वर्जन समझा जाता है। जैन आगमों में असत्य के चार प्रकार कहे गये हैं १. होते हुए नहीं कहना, २. नहीं होते हुए उसका अस्तित्व बताना, ३. वस्तु कुछ है और उसे कुछ और बताना, ४. हिंसाकारी, पापकारी और अप्रिय वचन बोलना । उपर्युक्त चारों प्रकार का असत्य भाषण श्रमण के लिए बर्जित है। श्रमण साधक को कैसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए, इसका विस्तृत विवेचन दशवकालिक सूत्र के सुवाक्यशुद्धि नामक अध्ययन में है। जैन आगमों के अनुसार भाषा चार प्रकार की होती है-१. सत्य, २. असत्य, ३. मिश्र और ४. व्याव १. आचारांग सूत्र, २।१५।१७९ । ३. वही, ३९८८ । २. देखिए, निशीथचूणि, २८९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy