SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 368
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण-धर्म ३२९ बौद्ध-परम्परा में श्रमण-जीवन के लिए आवश्यक योग्यताएँ-बौद्ध-परम्परा में भिक्षुसंघ में प्रवेश पाने के लिए यद्यपि जाति को बाधक नहीं माना गया है, तथापि उसने कुछ व्यक्तियों को भिक्षुसंघ में प्रवेश देने के अयोग्य माना है, जैसे हिंसक, चोर, सैनिक, राजकीय सेवा में नियुक्त व्यक्ति, लंगड़े-लूले, अंधे, काने एवं गूंगे-बहरे व्यक्ति । असाध्य रोगियों का भी भिक्षुसंध में प्रवेश वर्जित माना है। बौद्ध-परम्परा का यह भी नियम है कि १५ वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को श्रामणेर दीक्षा तथा २० वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को उपसंपदा नहीं देनी चाहिए । इस प्रकार बौद्ध-परम्परा में भी श्रमण-दीक्षा की अयोग्यता के संदर्भ में लगभग वे ही विचार उपलब्ध है, जो जैनपरम्परा में हैं। दोनों ही परम्पराओं में श्रमण-दीक्षा के लिए माता-पिता एवं परिवार के अन्य आश्रित जनों की अनुमति भी आवश्यक मानी गयी है। वैदिक परम्परा में संन्यास के लिए आवश्यक योग्यताएँ यद्यपि प्रारम्भिक वैदिक परम्परा में संन्यास का विशेष महत्त्व स्वीकार नहीं किया गया था और इसलिए जैन और बौद्ध परम्पराओं के ठीक विपरीत यह माना गया था कि संन्यास केवल अन्धों, लूले-लंगड़ों तथा नपुंसकों के लिए है, क्योंकि ये लोग वैदिक कृत्यों के सम्पादन के अधिकारी नहीं हैं। लेकिन वेदान्त के परवर्ती सभी आचार्यों ने इस दृष्टिकोण का विरोध किया है। इतना ही नहीं मेघातिथि आदि आचार्यों ने तो यह भी बताया है कि अन्धे, लूले, लंगड़े एवं नपुंसक आदि संन्यास के अयोग्य हैं, क्योंकि वे संन्यास के नियमों का पालन नहीं कर सकते ! यति-धर्म-संग्रह के अनुसार संन्यासधर्म से च्युत व्यक्ति का पुत्र, असुन्दर नाखूनों एवं काले दाँतों वाला व्यक्ति, क्षय रोग से दुर्बल, लूला-लंगड़ा व्यक्ति संन्यास धारण नहीं कर सकता । इसी प्रकार वे लोग भी जो अपराधी, पापी, व्रात्य होते हैं तथा सत्य, शौच, यज्ञ, व्रत, तप, दया, दान आदि के त्यागी होते हैं, उन्हें संन्यास ग्रहण करने की आज्ञा नहीं है । इस प्रकार वैदिक परम्परा में भी संन्यास के संदर्भ में उन्हीं योग्यताओं को आवश्यक माना गया है जो जैन और बौद्ध परम्पराओं में मान्य हैं । नारदपरिव्राजकोपनिषद् में लगभग वे ही सभी योग्यताएँ आवश्यक मानी गयी हैं जिनकी चर्चा हम जैन और बौद्ध परम्पराओं के संदर्भ में कर चुके हैं। जैन श्रमणों के प्रकार __ जैन-परम्परा में श्रमणों का वर्गीकरण उनके आचार-नियम तथा साधनात्मक १. बुद्धिज्म, पृ० ७६-७७ । २. देखिए बुद्धिज्म-पृ० ७७, विनयपिटक महावग्ग, १५४ । ३. यतिधर्म संग्रह, पृ० ५-६, देखिए-धर्मशास्त्र का इतिहास, पृ० ४९८ भाग १ । ४. माइनर उपनिषदाज़, खण्ड, १ पृ० १३६-१३७, देखिए-जैन एथिक्स, पृ० १४९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy