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________________ जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारवर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन प्रकार स्वावलम्बी समाज में समाज के सदस्य भी आपसी लेन-देन कर सकते हैं। शर्त यही है कि वह लेनदेन सहकार की दृष्टि से हो, व्यवसाय की दृष्टि से नहीं। ___ इस प्रकार तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर ज्ञात होता है कि गांधीवाद का जैन आचार-दर्शन से पर्याप्त साम्य है। फिर भी कुछ बातें ऐसी अवश्य हैं, जिनकी मौलिकता का श्रेय गांधीजी को जाता है। जैन विचार-परम्परा के पास अहिंसा, अनेकान्त और अपरिग्रह के सिद्धान्त तो थे, लेकिन सामाजिक जीवन में उनका प्रयोग नहीं हुआ था । यह तो महात्मा गांधी ही थे, जिन्होंने सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और धार्मिक क्षेत्रोंमें उनका व्यापक प्रयोग कर जीवन के सर्वांगीण क्षेत्र में उनकी उपयोगिता और शक्ति का आभास कराया । गांधीवाद में अहिंसा अन्याय के प्रतीकार का अस्त्र बनी है, अनेकांत सर्व धर्म समानत्व का आधार बना है और अपरिग्रह ट्रस्टीशिप के रूप में एक नयी सामाजिक अर्थ व्यवस्था का सिद्धान्त । श्रावक के दैनिक षट्कर्म श्रावक जीवन के आवश्यक षट्कर्म इस प्रकार हैं १. देवपूजा-तीर्थंकरों की प्रतिमाओं का पूजन अथवा उनके आदर्श स्वरूप का चिन्तन एवं गुणगान । २. गुरु-सेवा-श्रावक का दूसरा कर्तव्य गुरु की सेवा एवं उनका विनय करना है। भक्तिपूर्वक गुरु का वन्दन करना, उनका सम्मान करना और उनके उपदेशों का श्रवण करना। ___३. स्वाध्याय-आत्मस्वरूप का चिन्तन और मनन । इसके साथ-साथ ही आत्मस्वरूप का निर्वचन करनेवाले आगमनन्थों का पठन-पाठन आदि भी स्वाध्याय है । ४. संयम-संयम का अर्थ है अपनी वासनाओं और तृष्णाओंमें कमी करना । श्रावक का कर्तव्य है कि वह वासनाओं और तृष्णाओं पर संयम रखे। ५. तप-तप श्रावक की दैनिक चर्या का पाँचवाँ कर्म है । श्रावक को यथाशक्य अनशन, रस-परित्याग या स्वादजय आदि के रूप में प्रति दिन तप करना चाहिए । ६. दान-श्रावक का छठा दैनिक आवश्यक कर्म दान है। प्रत्येक श्रावक को प्रतिदिन श्रमण (मुनि), स्वधर्मी बन्धुओं और असहाय एवं दुखीजनों को कुछ न कुछ दान अवश्य करना चाहिए । हिन्दू धर्म के गृहस्थ के षटकर्म-तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर हम देखते हैं कि हिन्दू धर्म में भी गृहस्थ के लिए षट्कर्मों का विधान है। पाराशर स्मृति में निम्न षट्कर्म बताये गये हैं-१. सन्ध्या २. जप ३. होम ४. देवपूजा ५. अतिथिसत्कार एवं ६. वैश्यदेव (पाराशर स्मृति ११३९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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