________________
गृहस्थ धर्म
३१३
एवं अनासक्त जीवन में है, जबकि अस्वाद का सामाजिक मूल्य दूसरों को खिलाकर खुश होने में है । दूसरे शब्दों में, खिलाने में आनन्द माने स्वयं के खाने में नहीं, क्योंकि यह मनुष्य स्वभाव है कि आनन्द जब तक दूसरे की आँखों में प्रतिबिम्बित नहीं होता तब तक वह मेरे लिए भी पूर्ण नहीं बनता है। भगवान् बुद्ध ने कहा है कि अकेले स्वादिष्ट भोजन करना अवनति का कारण है (सुत्तनिपात ६।१२)। दादाधर्माधिकारी के शब्दों में अस्वाद का एक सामाजिक अर्थ है उत्पादन मेरे लिए नहीं होगा-समाज के लिए होगा (सामाजिक हित के लिए होगा)। जैन दर्शन में अस्वाद के इस सामाजिक पक्ष का विकास तो नहीं देखा जाता, लेकिन उसके वैयक्तिक पक्ष का विधान अवश्य है। श्रमण जीवन के लिए तो अस्वाद की आवश्यकता अनिवार्य रूप से स्वीकार की हो गयी है, लेकिन गृहस्थ-जीवन के लिए भी उपभोग-परिभोग-परिमाण व्रत के द्वारा अस्वाद की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा दी गयी है । उपभोग की वस्तुओं की सीमारेखा निश्चित करना भी स्वाद-जय का ही एक प्रयास है ।::
८ अभय-निर्भयता भी गाँधीवाद में एक व्रत है। सत्याग्रह और अहिंसा की शक्ति में दृढ़ विश्वास के लिए निर्भयता एक आवश्यक तत्त्व है । निर्भयता के अभाव में अहिंसा और सत्याग्रह की साधना असम्भव है। प्रश्नव्याकरणसूत्र में कहा गया है कि भयभीत साधना से विचलित हो जाता है, वह कर्तव्यभार या दायित्व का निर्वाह भी नहीं कर सकता ।' उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार भी भय से उपरत साधक ही अहिंसा का पालन कर सकता है ।२ जैन विचारणा में अभय को महत्त्वपूर्ण स्थान है, अभय करना और अभय होना ही जैन साधना का सार है। श्रावक के बारह व्रतों में अनर्थदण्डविरमणव्रत ही अभय का व्रत है । भय एक अनर्थदण्ड है, क्योंकि उसमें व्यक्ति अनावश्यक दुश्चिन्ताओं से घिरा रहता है।3 अनर्थदण्ड से विरत होने के लिए निम्न दुश्चिन्ताओं अर्थात् आर्तध्यान का छोड़ना आवश्यक है :-१. इष्ट के वियोग की चिन्ता, २. अनिष्ट के संयोग की चिन्ता ३. रोग चिन्ता, ४. निदान (उपलब्धि को चिन्ता)। निर्भयता अहिंसा की पहली शर्त है। भय से कायरता का जन्म होता है और कायर अहिंसक नहीं होता। गाँधीजी और जैन विचार इस सम्बन्ध में एकमत हैं कि अहिंसा वीर का धर्म है, कायर का नहीं।
९. सर्व धर्म समानत्व-सर्व धर्म समानत्व का व्रत गांधीवाद की विशेषता है । गाँधीवाद ने इस व्रत के द्वारा धर्म के नाम पर होनेवाले संघर्षों को समाप्त करने का प्रयास किया है । गाँधीजी सभी धर्मों में सत्य का दर्शन करते हैं और इसीलिए सभी
१. प्रश्नव्याकरण, २।२ ।
२. उत्तराध्ययन, ६।२ । ३. गाँधीवाद में भय शब्द का प्रयोग सामान्य भय के अर्थ में न होकर दुश्चिन्ताओं
के अर्थ में हुआ है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org