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________________ गृहस्थ धर्म ३०९ आचारदर्शन की व्रत व्यवस्था से काफी साम्य है । यद्यपि यह कहना तो उचित नहीं होगा कि उन्होंने इस व्रत विचार को जैन परम्परा से ही ग्रहण किया है, तथापि जैन धर्म के पारिवारिक संस्कारों और समकालीन जैन आध्यात्मिक विचारक श्रीमद्राजचन्द्र भाई (जिनमे गांधीजी काफी अधिक प्रभावित थे) के सम्पर्क से उनकी व्रत विचारणा अप्रभावित भी नहीं कही जा सकती । तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर निम्नलिखित साम्य परिलक्षित होता है : जैन आचारदर्शन १. अहिंसाव्रत २. सत्यव्रत ३. अचौर्यव्रत ४. स्वपत्नी संतोष अथवा ब्रह्मचर्यव्रत ५. अपरिग्रह ६. दिशा परिमाण ७. उपभोग - परिभोग विरमण ८. अनर्थदण्ड ९. सामायिक १०. देशावकाशिक ११. पौषधव्रत १२. अतिथि संविभाग गांधीवादी दर्शन १. अहिंसाव्रत २. सत्यव्रत ३. अचौर्यव्रत ४. ब्रह्मचर्य ५. अपरिग्रह ६. ( शरीर श्रम ) ७. अस्वाद ८. भय- वर्जन ९. सर्वधर्म समानत्व Jain Education International १०. ( स्पर्श - भावना) ११. (स्वदेशी) इस प्रकार हम देखते हैं कि गांधीवादी व्रतव्यवस्था युगीन समस्याओं के प्रकाश में किया हुआ जैन व्रतव्यवस्था का संशोधित अद्यतन संस्कार है । १. अहिंसा - यद्यपि जैन विचारकों ने अहिंसा का काफी अधिक गहराई तक विचार किया है, फिर भी जैन दर्शन में अहिंसा के निषेधात्मक पहलू का ही अधिक विकास हुआ है । जैन अहिंसा मात्र हिंसा से बचने के लिए ही थी । उसमें वह जीवन्त सामाजिक प्रेरणा नहीं थी जो एक गृहस्थ उपासक के लिए हिंसापूर्ण कठिन सामाजिक परिस्थितियों में सम्बल बन सके । गांधीवादी दर्शन में सत्याग्रह के द्वारा अहिंसा का सामाजिक जीवन में जो प्रयोग हुआ, वह निश्चित ही मौलिक है । गांधीवादी अहिंसा की महत्ता इस बात में नहीं कि प्राणियों की रक्षा किस प्रकार की जावे वरन् इस बात में है कि समाज में व्याप्त अन्याय का प्रतिकार अहिंसा के द्वारा कैसे किया जा सकता है । गांधीवाद में अहिंसा अन्याय के प्रतिकार के एक साधन के रूप में सामने आयी । गांधीजी ने अहिंसा को मानव-जाति के नियम के रूप में देखा -उनके अपने शब्दों में अहिंसा हमारी (मानव) जाति का नियम है जैसे कि हिंसा पशुओं का नियम For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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