________________
गृहस्थ धर्म
इसी प्रकार जैन-साधना में गृहस्थ के ७ शिक्षाव्रतों के पीछे जिस अनासक्ति की भावना के विकास का दृष्टिकोण है, वही अनासक्ति की वृत्ति गीता का मूल उद्देश्य है। गीता में आहार विवेक का निर्देश भी उपलब्ध है, गीता ने सात्त्विक, राजस और तामस तीन प्रकार के आहारों का विवेचन किया है। जैन-साधना में वणित सामायिकब्रत की तुलना गीता के ध्यानयोग की साधना के साथ की जा सकती है। जिस प्रकार सामायिक व्रत में पवित्र स्थान में सम आसन से मन, वाक् और शरीर का संयम किया जाता है, उसी प्रकार गीता के अनुसार ध्यानयोग की साधना में भी शुद्ध भूमि पर सम आसन से बैठकर शरीर चेष्टा और चित्तवृत्तियों का संयम किया जाता है। इसी प्रकार अतिथि संविभाग व्रत की जो विवेचना जैन-धर्म में उपलब्ध है, वह गीता में भी है। गीता में दान गृहस्थ का एक आवश्यक कर्तव्य माना गया है । ___ गृहस्थ-धर्म के सम्बन्ध में अधिक स्पष्ट विवेचना एवं तुलना के लिए हमें महाभारत की ओर जाना होगा। गीता तो महाभारत का ही एक अंग है । महाभारत में गृहस्थ-धर्म के सम्बन्ध में ऐसे अनेक निर्देश हैं, जो जैन आचार में वणित गृहस्थ-धर्म से साम्यता रखते हैं।
निम्न पंक्तियों में केवल तुलनात्मक दृष्टि से साम्य रखने वाले गृहस्थ-आचार को ही प्रस्तुत किया जा रहा है
१. वृथा पशुओं की हिंसा न करे ।' (अहिंसाणुव्रत) २. जुआ न खेले और दूसरों का धन न ले। (अस्तेय-अणुव्रत)
३. किसी को गाली न दे, व्यर्थ न बोले, दूसरों की चुगली या निन्दा न करे, मित-भाषी हो, सत्यवचन बोले तथा इसके लिए सदा सावधान रहे । (सत्य-अणुव्रत)
४. अपनी पत्नी के साथ ही विहार करे, परस्त्री के साथ नहीं। अपनी स्त्री को भी जब तक वह ऋतुस्नाता न हुई हो समागम के लिए अपने पास नहीं बुलाये और मन में एक पत्नीव्रत धारण करे। (स्वपत्नी सन्तोषव्रत)।
५. गृहस्थ के लिए चार प्रकार की (संग्रह) वृत्ति बतायी है-१. कोठे भर अनाज का संग्रह करके रखना, २. कुंडे भर अनाज संग्रहीत करके रखना, ३. एक दिवस के उपभोग जितने ही अन्न का संग्रह रखना, ४. कापोतीवृत्ति (उच्छवृत्ति)। इन चारों में प्रत्येक अपने पूर्ववर्ती की अपेक्षा श्रेष्ठ मानी गयी है ।" (परिग्रह परिमाण व्रत)।
६. विकाल में भोजन नहीं करे । उपवास न करे किन्तु अधिक भी नहीं खाये,
१. महाभारत शान्तिपर्व, २४३।५। ३. वही, २६९।२५ । ५. वही, २४३.२-३ ।
२. वही, २६९।२४ । ४. वही, २६९।२७ । ६. वही, २४३।७।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org