________________
३०६
हिन्दू आचार दर्शन में गृहस्थ धर्म
यद्यपि गीता में जैन-दर्शन के समान व्रत व्यवस्था का अभाव है, तथापि जैन गृहस्थ के आचार से सम्बन्धित अनेक तथ्य ऐसे हैं जिन पर तुलनात्मक दृष्टि से विचार किया जा सकता है ।
जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारवर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
जिस प्रकार जैन आचार दर्शन में सम्यक् श्रद्धा को आवश्यक माना गया है, उसी प्रकार गीता एवं समग्र हिन्दू आचार-दर्शन में भी श्रद्धा को आवश्यक माना गया है । इतना ही नहीं, गीता श्रद्धा पर जैन विचारणा की अपेक्षा अधिक जोर देती है । गीता में कहा है कि पुरुष श्रद्धामय है । व्यक्ति की जैसी श्रद्धा होती है, वैसा ही वह होता है अर्थात् श्रद्धा के अनुरूप ही उसके चरित्र का निर्माण होता है । जो व्यक्ति श्रद्धायुक्त है, यद्यपि योगमार्ग ( आचरण की दिशा ) में प्रयत्न करने वाला नहीं है अथवा योगमार्ग (आचरण) से भ्रष्ट हो गया है, उसका न तो विनाश होता और न वह दुर्गति में जाता है वरन् धीरे-धीरे प्रयत्न करते हुए अनेक जन्मों के अन्त में सिद्धि प्राप्त कर लेता है |
गीता में भी अविरत सम्यक् दृष्टि नामक उस वर्ग को स्वीकार किया गया है जो श्रद्धा समन्वित होते हुए भी आचरण की दिशा में आगे नहीं बढ़ता है । गीताकार ने 'अयतिः श्रद्धयोपेतो' (अयतिः = अप्रयत्नवान् योगमार्ग ) 3 कहकर उसका निर्देश किया है ।
यद्धपि गीता में जैन विचारणा-सम्मत सप्त दुर्व्यसनों के त्याग का कोई निर्देश नहीं मिलता, तथापि महाभारत में जुआ, मद्यपान, परस्त्री - संसर्ग और मृगया (शिकार) इन चार व्यसनों के त्याग का निर्देश है ।
गीता में जैन- विचारणा की भाँति गृहस्थ-साधक के व्रतों का कोई स्पष्ट विवेचन उपलब्ध नहीं है । गोता में अहिंसा" सत्य ब्रह्मचर्य अपरिग्रह ' का सामान्य निर्देश अवश्य है, तथापि वह यह नहीं बताती है कि गृहस्थ जीवन में इनका पालन किस प्रकार किया जावे। गीता सैद्धान्तिक रूप में तो उन्हें स्वीकार करती है, फिर भी गृहस्थ जीवन के योग्य उनके व्यावहारिक स्वरूप का उसमें उल्लेख नहीं है । गीता में मात्र सद्गुणों के रूप में उनका उल्लेख किया गया है। गीता ने यह कहकर कि जो गृहस्थ बिना दिये भोग करता है वह चोर ही है, गृहस्थ के सामाजिक उत्तरदायित्व को स्पष्ट अवश्य किया है !
१. गीता १७।३ ।
२. वही, ६।३७, ४५ ।
३. वही (शां० ) ६।३७ ।
४. महाभारत शान्तिपर्व, २८८।२६ ।
५. गीता, १०९, १३७, १६२, १७।१४ । ६. वही, १०४, १६।२-७, १७११५ । ७. वही, ६।१४, ८ ११, १७११४ । ९. वही, ३।१२ ।
८. वही, ६।१० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org